नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट में एक साथ तीन तलाक के मसले पर ही सुनवाई होगी. ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. सुनवाई के दौरान जस्टिस नरीमन ने कहा कि 3 महीने के अंतराल में दिए गए तलाक पर विचार नहीं होगा. उन्होंने कहा कि एक साथ तीन तलाक के मसले पर ही सुनवाई होगी.
वहीं सुनवाई में शामिल कांग्रेस नेता और वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर सुलह की कोशिश नहीं हुई हो तो तलाक वैध नहीं माना जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक की समीक्षा के लिए कहा है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़ी तो निकाह हलाला पर सुनवाई की जाएगी.
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि बहुविवाह पर समीक्षा नहीं की जाएगी. वहीं कोर्ट ने कहा, ‘हम ये समीक्षा करेंगे कि तीन तलाक धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं.’
तलाक-ए बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं?
क्या इन दोनों मुद्दों को महिला के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं?
क्या कोर्ट इसे मौलिक अधिकार करार देकर कोई आदेश लागू करा सकता है या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष अपनी जिरह इन्हीं मुद्दों पर करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘अगर हमको ये लगता है कि तीन तलाक धर्म का हिस्सा है तो हम इसमें दखल नहीं देंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में तमाम पक्षकारों से राय मांगी थी और कहा था कि कोर्ट 11 मई को सबसे पहले उन सवालों को तय करेगा जिन मुद्दों पर इस मामले की सुनवाई होनी है.
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एकसाथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी. साथ ही मुस्लिमों की बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी.
शायरा बानो ने डिसलूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को भी यह कहते हुए चुनौती दी कि मुस्लिम महिलाओं को द्वि-विवाह (दो शादियों) से बचाने में यह विफल रहा है. शायरा ने अपनी याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहले विवाह के रहते हुए मुस्लिम पति द्वारा दूसरा विवाह करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से विचार करने को कहा है.
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने खुद संज्ञान लिया था और चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि वह स्पेशल बेंच का गठन करें ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामले को देखा जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल और नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था और पूछा था कि क्या जो मुस्लिम महिलाएं भेदभाव की शिकार हो रही हैं उसे उनके मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए.
जजों की जो संवैधानिक पीठ इस मसले पर सुनवाई करेगी उसमें अलग-अलग धर्मों के जज शामिल हैं. पीठ के सदस्यों में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम समुदाय से हैं. जिसमें चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर. एफ. नरिमन, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार अपना पक्ष रख चुकी है. सरकार तीन तलाक को मानव अधिकारों के विरुद्ध मानती है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम धार्मिक नेताओं से मुलाकात में अपील की थी कि तीन तलाक के मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा न बनने दें और इसमें सुधार में अग्रणी भूमिका निभाएं.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि तीन तलाक इस्लाम का अंदरूनी मामला है और बोर्ड साल-डेढ़ साल मामले पर आम राय बना लेगा.
इलाहाबाद HC तीन तलाक को असंवैधानिक बता चुका है. इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था.