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स्मार्टफ़ोन अब स्मार्टनेस का स्टेटस सिंबल बन चुका है. लेकिन यही स्मार्टफ़ोन अब धीरे-धीरे आंखों के स्मार्टनेस को ख़त्म करने का कारण भी बनता जा रहा है.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक़, अंधेरे में स्मार्टफ़ोन का उपयोग करने से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है. रिपोर्ट के अनुसार दो महिलाओं में इसके लक्षण भी देखे गए जो इन दिनों स्मार्टफ़ोन ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं.
भारत में भी अब स्मार्टफ़ोन के कारण प्रभावित लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है.
नेत्र चिकित्ष्क डॉ. दीपक सदारंगी के मुताबिक़, “मुंबई के जसलोक अस्पताल में प्रतिदिन 100 में से 20-25 ऐसे आंखों के मरीज़ आते हैं, जो स्मार्टफ़ोन या कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल से परेशान हैं और अब उन्हें इसकी तकलीफ़ महसूस होने लगी है.”
ऐसी रिपोर्टों के बावजूद युवाओं में स्मार्टफ़ोन का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है.
बायोटेक्नोलॉजी सेकंड ईयर की स्टूडेंट श्रावस्ती बनर्जी कहती हैं, “मैं स्मार्टफ़ोन के बगैर नहीं रह सकती क्योंकि कॉलेज के नोट्स हों या कॉलेज की ओर से मिलने वाली जानकारी, सभी स्मार्टफोन पर आसानी से उपलब्ध हो जाते है. मैं मुंबई में अपने माता-पिता से दूर रहती हूं, इसलिए भी स्मार्टफोन का उपयोग मेरे लिए जरुरी है. मुंबई में पीजी में रहने की वजह से रात में एक वक़्त के बाद लाइट बंद करनी पड़ती है. क्योंकि कमरे में और भी लड़कियां सो रही होती हैं तो ऐसे में अंधेरे में मुझे पढ़ने के लिए ज़्यादातर स्मार्टफ़ोन का ही सहारा लेना पड़ता है.”
वजह चाहे जो भी लेकिन स्मार्टफ़ोन आंखों के लिए घातक साबित हो रहा है.
इन्शुरेंस कंपनी में काम करने वाले प्रमोद देशमुख के मुताबिक़, “मैं एक दिन में तीन से चार घंटे अपना फ़ोन और पांच से छह घंटे कंप्यूटर पर काम करता हूं. एक दिन अचानक मेरी आंखों में तकलीफ शुरू हो गई है और अब मैं लगातार नेत्र चिकित्सक के संपर्क में हूं.”
नेत्र चिकित्सक डॉ. वैशाल केन्या ने बीबीसी को बताया कि, “स्मार्टफ़ोन या कोई अन्य डिज़िटल गैज़ेट ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने से गैजट से निकलने वाली ब्लू लाइट आंखों में ड्राईनेस पैदा कर देती है या फिर यह आंखों की रेटिना को सीधे नुकसान पहुंचाती है. स्मार्टफ़ोन या डिज़िटल गैज़ेट के इस्तेमाल का दुष्प्रभाव तुरंत सामने नहीं आता, लेकिन धीरे-धीरे इससे आंखों की रोशनी कम होने लगती है.”
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन द्वारा किए गए शोध पर डॉ. वैशाल केन्या कहते हैं कि, “अभी तो यह शुरुआती जांच है, फिर भी मेरे पास रोज़ाना दस में से चार ऐसे मरीज़ आते हैं, जिनकी आंखे स्मार्टफ़ोन या डिज़िटल गैज़ेट का ज्यादा उपयोग करने से या तो ड्राई हो जाती हैं, या फिर ब्लू एलईडी लाइट की वजह से आंखों की रेटिना पर असर पड़ता है.”
ऐसा नहीं है कि स्मार्टफ़ोन या डिज़िटल गैज़ेट सिर्फ़ युवा वर्ग, बच्चे या फिर वरिष्ठ लोग ही जानकारी के अभाव में इस्तेमाल करते हैं.
बल्कि ए.सी.एस हेल्थ के डायरेक्टर डॉ.आशीष तिवारी कहते हैं कि, “मैं भी स्मार्टफ़ोन और डिजिटल गैजट का ज़्यादा उपयोग करता हूं. जिसकी वजह से मुझे भी थोड़ी परेशानी शुरू हो गई है और अब मैं चश्मे का इस्तेमाल करने लगा हूं. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन के रिसर्च पर डॉ. आशीष का मनना है कि, “इस रिसर्च के पूरा होने पर इस बीमारी को ज़रूर स्मार्टफ़ोन ब्लाइंडनेस नाम दिया जाएगा.”
– ज़रूरत से ज़्यादा स्मार्टफ़ोन या डिजिटल गैजट का इस्तेमाल नुकसानदेह है.
– स्मार्टफ़ोन जैसे डिज़िटल गैज़ेट का उपयोग कम करके बड़े स्क्रीन का इस्तेमाल करें.
– रात को अंधरे में स्मार्टफ़ोन या टैब का इस्तेमाल ना के बराबर करें. – बिस्तर पर लेटकर स्मार्टफोन या डिजिटल गैजट का इस्तेमाल न करना बेहतर होगा, अगर बेहद जरूरी हो तो ही उपयोग करें.
– बिस्तर पर स्मार्टफोन का कंट्रास्ट बढ़ाकर और ब्राइटनेस कम करके इस्तेमाल करें.
– रीडिंग डिस्टेंस 14-16 इंच होना ज़रूरी है.
आखें स्वस्थ रखने के लिए:
– रोज़ाना आंखों में लुब्रिकेटिंग ऑय ड्राप डालें.
– लुब्रिकेटिंग ऑय ड्राप का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता.
– इसे सभी ऐज ग्रुप के लोग आंखों डाल सकते हैं.
– स्मार्टफ़ोन का उपयोग करते समय अपनी आंखों को लगातार ब्लिंक करते रहें.
– आंखों की पलकों को ब्लिंक करने से इनमें ड्राईनेस नहीं होगा.
– आंखों पर हल्के गर्म पानी की सेंक करने से आंखें स्वस्थ रहेंगी.
– आंखों को स्वस्थ रखने के लिए अपने खाने में सेव, कीवी, कलरफुल फ्रूट्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट वाले फल के अलावा अखरोट और हरी सब्ज़ी का सेवन करें.