अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस से ठीक पहले यूनाइटेड नेशंस एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के अनुसार एक-चौथाई देशों में महिला अधिकारों पर प्रतिघात हो रहा है।
यूएन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट Women’s Rights in Review 30 Years After Beijing से खुलासा होता है कि एक-चौथाई देशों में महिला अधिकारों पर प्रतिघात हो रहा है।
खुलासे से पता चलता है कि इतिहास में किसी ना किसी समय पर 87 देशों का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया जा चुका है, मगर वास्तविक समानता साकार करने के लिए अब भी एक लम्बा रास्ता तय किया जाना है।
रिपोर्ट के अनुसार, महिला अधिकारों के लिए कई दशकों की पैरोकारी के बावजूद, आर्थिक अस्थिरता, जलवायु संकट, हिंसक टकराव और राजनैतिक विरोध के कारण लैंगिक समानता के लिए हालात बिगड़ रहे हैं।
बीते दशक में, हिंसक टकराव की चपेट में आने वाली महिलाओं व लड़कियों की संख्या में 50 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। यही नहीं महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है और उन पर निजी हमले व उन्हें मार दिए जाने के मामले बढ़े हैं।
हर दस मिनट में किसी पारिवारिक सदस्य या अंतरंग साथी द्वारा एक महिला या लड़की को जान से मारे जाने पर रिपोर्ट में चिन्ता जताई गई है।
जहाँ एक ओर महिलाओं व लड़कियों को डिजिटल व टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में समुचित प्रतिनिधित्व हासिल नहीं है वहीँ डिजिटल जगत में लैंगिक विषमताएँ गहरी हुई हैं। इस सबके बीच कृत्रिम बुद्धिमता व सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म पर हानिकारक प्रवृत्तियों को भी बढ़ावा मिल रहा है।
यूएन एजेंसी के अनुसार, कोविड-19 जैसे संकटों, बढ़ती खाद्य व ईंधन क़ीमतों और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण से ना केवल प्रगति धीमी हो रही है, बल्कि अब तक दर्ज की गई प्रगति की दिशा भी पलट रही है।