इंसानी शरीर को नींद की उतनी ही जरूरत है जितनी खाने पीने की। नींद का ना आना बीमारी का संकेत हो सकता है। इसलिए गहरी नींद में सोने की कोशिश जरूर करनी चाहिए, लेकिन इसके लिए करना क्या चाहिए?
हर उम्र में शरीर की नींद को ले कर जरूरत बदलती है। नवजात शिशु 18 घंटे तक सोते हैं। वहीं वयस्कों को औसतन आठ घंटे की नींद की जरूरत होती है। नींद पूरी ना होने पर थकान होने लगती है और कुछ भी करने में मन नहीं लगता। ऐसा इसलिए है कि नींद में दिमाग की सफाई होती है. ऐसा न होने पर वह ठीक से काम करना बंद कर देता है।
नींद ना आने पर कुछ लोग शराब का सहारा लेने लगते हैं। डॉक्टर इस आदत को गलत बताते हैं। रेगेंसबुर्ग विश्वविद्यालय में जैविक मनोविज्ञान के प्रोफेसर युर्गेन सुलाई कहते हैं, “अलकोहल गहरी नींद और सपने के चक्र को छेड़ता है और नतीजा पसीना आना, दिल की धड़कन बढ़ना और बार बार नींद का खुलना हो सकता है।” रोज पीने से नशे की लत भी हो सकती है।
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार हफ्ते में तीन बार पूरी रात न सोने को नींद न आने की बीमारी समझा जाता है लेकिन डॉक्टर की मदद लेने या दवा खाने से पहले लोगों को जीवन पद्धति में बदलाव का सहारा लेना चाहिए। अच्छी नींद के लिए स्वस्थ जीवन जरूरी है। नियमित रूप से पौष्टिक आहार करना और शाम को ज्यादा न खाना मदद कर सकता है. कुछ दूसरे घरेलू उपचार भी फायदेमंद हो सकते हैं।
खाने पर ध्यान देने के अलावा नियमित कसरत करना भी लाभदायक है। शारीरिक परिश्रम शरीर को थकाता है और आराम की जरूरत बढ़ाता है। नियमित खेलकूद करना या टहलना शरीर को चुस्त रखता है और सोने में भी मदद करता है। इसके अलावा योग और ध्यान के जरिए तनाव कम किया जा सकता है। शारीरिक श्रम या मेडिटेशन तकनीक के जरिए तनाव को घटाना सोने की क्षमता बढाता है।
बर्लिन के शारेटे मेडिकल कॉलेज के नींद विशेषज्ञ इंगो फीत्से कहते हैं, “यह सोने को आसान जरूर बनाते हैं, नींद टूटने की समस्या का समाधान नहीं करते।” फीत्से का कहना है कि सबसे अच्छा शारीरिक श्रम है जो अच्छी तरह सोने में मदद करता है। लेकिन शाम में ज्यादा थकने के बदले दिन में व्यायाम करना चाहिए ताकि शरीर को शाम में आराम में आने का मौका मिल सके। रात में कुछ करने का मन है तो फीत्से टहलने को पर्याप्त मानते हैं। सोने से पहले धीमा संगीत भी शरीर को आराम देता है और सोने में मदद देता है।