आज रवींद्रनाथ टैगोर की 164वीं जयंती मनाई जा रही है। कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में 7 मई 1861 को जन्मे रवींद्रनाथ टैगोर का सिनेमा से भी गहरा नाता रहा है।
साल 1941 में टैगोर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था मगर अपनी वैचारिकी की बदौलत उन्होंने न सिर्फ नोबेल प्राइज़ जीता बल्कि सिनेमा की दुनिया के लिए प्रेरणा बने।
वैसे तो भारतीय सिनेमा में उनकी विचारधारा की झलक मिलती है मगर साल 1932 में आई एक फिल्म का निर्देशन रबिन्द्रनाथ टैगोर ने किया था।
बतौर दार्शनिक एक कवि, लेखक और चित्रकार के रूप में सिनेमाई दुनिया में टैगोर का योगदान अद्वितीय है। आज़ादी से पहले देश में सिनेमा की शुरुआत पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के द्वारा 1913 में हुई। इस फिल्म का निर्देशन दादा साहेब फाल्के द्वारा किया गया था।
रवींद्रनाथ टैगोर इस ज़माने में कई नाटक और उपन्यासकार लिख चुके थे साल 1932 में उन्होंने एक मूक फिल्म का निर्देशन किया। इस फिल्म का नाम था ‘नातिर पूजा’।
यह फिल्म टैगोर के ही लिखे एक नाटक की कहानी पर आधारित थी। टैगोर ने इस फिल्म में अभिनय भी किया था मगर ख़ास बात यह है कि इस फिल्म की शूटिंग केवल चार दिनों में ही पूरी हो गई थी।
टैगोर अभिनीत और निर्देशित इस फिल्म में सिनेमैटोग्राफर का काम नितिन बोस ने जबकि संपादन का काम सुबोध मित्रा ने संभाला। बताते चलें कि यह फिल्म व्यावसायिक रूप कामयाब नहीं हो सकी थी।
साल 1953 एक फिल्म बनी ‘दो बीघा जमीन’। बिमल रॉय के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की बंगाली कविता ‘दुई बीघा जोमी’ पर आधारित थी। यह फिल्म आज भी मास्टरपीस में अपनी जगह बनाए है।
साल 1961 में सत्यजीत रे ने एक फिल्म बनाई ‘तीन कन्या’। टैगोर ने इस फिल्म की कहानी लिखी थी जो तीन कहानियों ‘द पोस्टमास्टर’, ‘मोनिहारा’ और ‘समाप्ति’ पर आधारित थी।
सत्यजीत रे और टैगोर की फ़िल्मी दुनिया की बॉन्डिंग की कई मिसालें सिनेमा के इतिहास में मिलती हैं। टैगोर की कहानियों पर सत्यजीत रे ने ‘चारुलता’ और ‘घर-बाइरे’ जैसी फिल्मों का निर्माण किया। यही नहीं साल 1961 में उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई।
रवींद्रनाथ टैगोरकी कहानियों, नाटक और उपन्यास पर आधारित कहानी वाली फिल्में अधिकतर स्त्री विमर्श के मुद्दे से जुड़ी होती थीं।