टोक्यो: जापान के शोधकर्ताओं ने पानी वाले बादलों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी और जलवायु परिवर्तन पर उनके प्रभाव की जांच की है।
‘प्लास्टिक वायु प्रदूषण’ की समस्या का सक्रिय रूप से समाधान नहीं किया गया, तो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय खतरा एक वास्तविकता बन जाएंगे जिससे भविष्य में पर्यावरण को गंभीर क्षति हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टोक्यो में वासेदा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिरोशी ओकोची के नेतृत्व में एक नए अध्ययन में पाया गया कि बड़ी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक साँस के माध्यम से मनुष्यों और जानवरों में प्रवेश करते हैं और फेफड़ों, हृदय, रक्त, फेफड़ों और आंतों में जमा हो जाते हैं।
जापानी शोधकर्ताओं ने वायुमंडल में माइक्रोप्लास्टिक्स (AMPs) का पता लगाया है जो मानव स्वास्थ्य और जलवायु पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। उनका अध्ययन हाल ही में एनवायर्नमेंटल केमिस्ट्री लेटर्स जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
अध्ययन में बताया गया है कि यदि ‘प्लास्टिक वायु प्रदूषण’ की समस्या का सक्रिय रूप से समाधान नहीं किया गया, तो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय खतरे एक वास्तविकता बन जाएंगे जिससे भविष्य में पर्यावरण को गंभीर क्षति हो सकती है।
इसके अलावा दस मिलियन टन प्लास्टिक के कण समुद्र के पानी में मिल जाते हैं, जिसके बाद वे वाष्प में बदल जाते हैं और वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं।
Researchers in Japan have confirmed microplastics are present in clouds, where they are likely affecting the climate in ways that aren't yet fully understood.https://t.co/CAPb9bE7VZ
— Philstar.com (@PhilstarNews) September 28, 2023
जापानी शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका मतलब यह है कि माइक्रोप्लास्टिक बारिश में इकट्ठा होने वाले बादलों का एक अभिन्न अंग बन गया है, जिससे हम जो कुछ भी खाते-पीते हैं, वह प्लास्टिक से दूषित हो जाता है। हालाँकि माइक्रोप्लास्टिक्स पर अधिकांश अध्ययन जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर केंद्रित हैं, लेकिन कुछ ने बादल निर्माण और जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभावों को हवाई कणों से भी जोड़ा है।
गौरतलब है कि 5 मिमी से कम आकार के प्लास्टिक कणों को “माइक्रोप्लास्टिक्स” कहा जाता है। प्लास्टिक के ये छोटे टुकड़े अकसर औद्योगिक कचरे में पाए जाते हैं या बड़े प्लास्टिक कचरे के अपघटन से बनते हैं।