हाल ही में विशेषज्ञों ने पाया है कि बिस्तर पर एक घंटे तक लेटे-लेटे मोबाइल फोन देखना भी हानिकारक हो सकता है। जैसे-जैसे दुनिया भर में मोबाइल फोन का उपयोग बढ़ रहा है, उस अनुपात में इसके उपयोग को लेकर बनने वाले नियम कायदे बेहद कम हैं। हालांकि मोबाईल के प्रयोग के साथ इस संबंध में संयम बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है।
नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के विशेषज्ञों ने 45,000 विश्वविद्यालय के छात्रों पर एक अध्ययन किया और पाया कि जो पुरुष और महिलाएं रात में बिस्तर पर लेटे हुए केवल एक घंटे के लिए भी अपने मोबाइल फोन देखते हैं, उनमें अनिद्रा का खतरा 59% बढ़ जाता है।
इस आदत को अपनाने से व्यक्ति की नींद की गुणवत्ता और नींद के समय पर भी असर पड़ता है। इसलिए बेहतर है कि इस आदत को जल्द से जल्द छोड़ दिया जाए। नींद की मेडिसिन एक्सपर्ट मिशेल ड्रेप, नींद को नुकसान पहुँचाने वाली इस आदत पर प्रकाश डालते हुए बताती हैं कि सोने से पहले अपने फोन का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए।
स्मार्टफोन से निकलने वाली नीली रोशनी नींद के प्राकृतिक चक्र को ख़त्म कर सकते हैं। शाम को नीली रोशनी के संपर्क में आने से मेलाटोनिन उत्पादन का समय पीछे हो सकता है, जिससे सोना मुश्किल हो जाता है। मेलाटोनिन एक नींद को नियंत्रित करने वाला हार्मोन है, और इसका खत्म होना नींद संबंधी विकार पैदा कर सकता है।
अध्ययनों से पता चलता है कि तकनीक का ज़्यादा निष्क्रिय इस्तेमाल जैसे फोन के ज़रिए संगीत सुनना या कोई ऐसा टीवी शो देखना जो परेशान न करे; सक्रिय इस्तेमाल की तुलना में नींद पर वास्तव में कोई प्रभाव नहीं डालता है। डॉक्टर ड्रेप के अनुसार सक्रिय इस्तेमाल में टेक्स्टिंग या सोशल मीडिया जैसी चीज़ें शामिल हैं।
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि एक आम इंसान के लिए औसत सात घंटे की नींद लेना महत्वपूर्ण है। सही नींद के कारण व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से ऊर्जावान बना रहता है। ऐसे में नींद की कमी से थकान, डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन होना आम बात है। ये समस्याएं घरेलू के साथ प्रोफेशनल जीवन में भी हर स्तर पर नुकसान पहुंचाती हैं।