पूरी दुनिया सहित भारत भी बदलती जलवायु की समस्याओं से जूझ रहा है। इसका प्रभाव हमारी आर्थिक, दैनिक और सामाजिक परिस्थितियों पर पड़ा है। ग्रीनहाउस गैस एमिशन में होने वाला इज़ाफ़ा, जलवायु परिवर्तन को रफ़्तार दे रहा है। परिणाम स्वरूप पूरा विश्व इन चरम मौसम वाली घटनाओं से गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है।
जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग से बीता जुलाई गर्मी के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुका है। समुद्री सतह पर होने वाली गर्मी भी अपने उच्च तापमान पर आ चुकी है।
चरम मौसम के कारण फसलों की तबाही के नतीजे सामने हैं। इस समय टमाटर से लेकर तेल तक की कीमतों में इज़ाफे के पीछे कहीं न कहीं ये कारण भी हैं। जलवायु परिवर्तन के तीव्र होने से ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ती जायेगी। इस सम्बन्ध में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बाढ़, लू और चक्रवात जैसी चरम घटनाओं का दोहराना भी बढ़ जायेगा।
इसी कर्म में हम कई और उदाहरणों को अनदेखा नहीं कर सकते हैं। जिनमे बीते वर्ष पूर्वी अफ्रीका का सूखा, पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और बाढ़ से होने वाली तबाही तथा चीन और यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है।
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— Seema Javed (@seemajaved) August 29, 2023
जलवायु परिवर्तन के कारण बड़े पैमाने पर पलायन को बढ़ावा मिला है। इसके पीछे भी जलवायु परिवर्तन से होने वाली खाद्य समस्याएं हैं। बीते सवा लाख वर्षों में इस साल 2023 में जुलाई का महीना सबसे अधिक गर्म रहा। ऐसे में दुनिया भर में समुद्र की सतह का तापमान भी सबसे ज्यादा गर्म रहा।
हिमाचल प्रदेश का उदहारण हमारे सामने है। पश्चिमी हिमालय तथा पड़ोसी उत्तर-पश्चिमी मैदानों में जुलाई के दूसरे सप्ताह में होने वाली अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से बड़ी आबादी प्रभावित हुई है। यहाँ एक सप्ताह के भीतर 50 से अधिक भूस्खलन हुए हैं।
गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक जैसे राज्यों ने 18- से 28 जुलाई के मध्य होने वाले मौसम परिवर्तन का प्रभाव झेला है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भी इन तब्दीलियों से अछूते नहीं रहे, यहाँ के निवासियों ने 26-28 जुलाई तक बाढ़ का सामना किया।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक़ पहाड़ की चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई तक पृथ्वी के गर्म होने के असर साफ नजर आ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और उसके कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार थम नहीं रही है। अंटार्कटिक समुद्री बर्फ रिकॉर्ड स्तर पर, अपनी सबसे निचली सीमा तक गिरने से कुछ यूरोपीय ग्लेशियरों का पिघलना तो गिनती से भी बाहर हो गया है।
इसके दुखद नतीजे उस समय सामने आये जब इसी सप्ताह ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगभग 10,000 एंपेरर पेंगुइन के नन्हें चूज़ों की मृत्यु हो गई। जिस स्थान पर ये चूज़े रह रहे थे वहां की समुद्री बर्फ पिघल कर टूट गई। इन नन्हे चूजों में अंटार्कटिक महासागर में तैरने के लायक पंखों का विकास नहीं हुआ था। इसलिए पिघलती बर्फ का सामना न कर पाने के कारण डूबने से इनकी मौत हो गई।
Emperor Penguins have been in news for all wrong reasons.
In late 2022, up to 10,000 emperor penguin chicks across four colonies in Antarctica’s Bellingshausen Sea may have died as the sea ice underneath their breeding grounds melted and broke apart.
A Twitter 🧵 on Emperor… pic.twitter.com/HWi5iDyw7V
— Environment and Ecology for UPSC 🇮🇳 (@Ecology4UPSC) August 29, 2023
ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अगर बिना किसी अड़चन के इसी तेज़ी से बढ़ता रहा तो इस बढ़ते तापमान के कारण पिघल रहे अंटार्कटिक बर्फ के चलते एंपरर पेंगुइन की 98 फीसदी आबादी इक्कीसवीं सदी तक विलुप्त हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम था जब बिपरजॉय चक्रवात उत्तरी हिंद महासागर पर दूसरा सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बना। इसकी तीव्रता से आस पास के राज्य भी अछूते नहीं रहे। एक भारी तबाही का माध्यम बना ये चक्रवात भारत में मानसून के साथ त्रासदी बनकर गुज़रा। बिपरजॉय के नाम पर इन राज्यों ने जो कुछ भी झेला वह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की देन था।