साल था 1929 और दिन था चार नवंबर. एक कन्नड़ परिवार के घर एक बच्ची ने जन्म लिया. हस्तविद्या के जानकार घर के ही एक बुज़ुर्ग ने इस बच्ची की हथेली देखते हुए कहा इसे भगवान का वरदान मिला हुआ है.
परिवार ने सोचा शायद बेटी बड़ी गायिका या नृत्यांगना बन जाएगी लेकिन उस समय ये कोई नहीं समझ पाया कि शकुंतला देवी बड़ी होकर परिवार ही नहीं देश का नाम भी ऊंचा करेंगी वो भी एक ऐसे विषय में जिसे लड़कियों की समझ से दूर माना जाता है.
एक गणितज्ञ, ज्योतिषी, लेखिका, बांसुरी वादक ऐसी खूबी किसी विलक्षण प्रतिभा वाले ही व्यक्ति में ही हो सकती है.
गणितज्ञ ऐसी कि उन्होंने 13 अंक वाले दो नंबरों का गुणन केवल 28 सेकंड में बता कर 1982 में अपना नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज करा लिया था.
उनकी ज्योतिष विद्या से अपने भविष्य की राह तलाशने के लिए बड़े-बड़े नेता उनसे सलाह लेते थे और वैज्ञानिक उनकी क्षमता को समझने के लिए सवालों की झड़ी लगा देते थे.
कहते हैं शकुंतला की गणित में इस विलक्षण प्रतिभा को उनके पिता ने तीन साल की उम्र में ही पहचान लिया था जब शकुंतला उनके साथ ताश खेल रही थीं.
छोटी उम्र होने के बावजूद जिस गति से वे अंक याद कर पा रही थी वो पिता को अद्भुत लगा और जब वे पांच साल की हुईं तो वे गणित के सवाल ही सुलझाने लगी.
एक साझात्कार में उन्होंने बताया था कि पड़ोस के बच्चे भी उनकी मदद मांगने आते थे और धीरे-धीरे लोगों तक उनकी इस विशेष प्रतिभा की खबर पहुंचने लगी.
शकुंतला के मुताबिक उन्होंने चार साल की उम्र से पहले ही यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर में एक बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया और यही उनकी देश-विदेश में गणित के ज्ञान के प्रसार की पहली सीढ़ी बनी.
शकुंतला देवी के पिता सर्कस में करतब दिखाते थे. शकुंतला ने स्कूली पढ़ाई नहीं की थी.