चीन और तुर्की के बीच आपसी संबंधों को बढ़ाने की कोशिशों पर भारत, यूरोप और अमेरिका समेत पूरी दुनिया की नजर है. यूरोप और एशिया की कड़ी तुर्की अब शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने की कोशिश में भी है.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई है. ये मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के अमेरिका के साथ संबंध बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं. दोनों देश एक-दूसरे के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने की कोशिश में हैं.
तुर्की के अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ कई मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आए हैं. इनकी वजह सीरिया पर अलग राय, रूस से एस-400 मिसाइल खरीदने की योजना और 2016 में तुर्की में हुई तख्तापलट की नाकाम कोशिश हैं.
China appreciates that Turkey has forbidden anti-China activities in Turkey, as well as emphasizing Turkey’s support for China in combating #terrorism, and its willingness to cooperate in fighting terrorism: Chinese President Xi Jinping to Turkish President Recep Tayyip Erdogan pic.twitter.com/zm1HpENJ0z
— Global Times (@globaltimesnews) July 2, 2019
इस मुलाकात के मायने निकाले जा रहे हैं कि नाटो का सदस्य देश तुर्की पूर्व और पश्चिम के साथ अपने संबंधों में सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहा है.
एर्दोवान की योजना है कि तुर्की शंघाई सहयोग संगठन का भी सदस्य बने. फिलहाल शंघाई सहयोग संगठन में चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ साथ भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं.
हाल में चीन और अमेरिका के बीच चल रहा कारोबारी युद्ध दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच की लड़ाई है. ये कारोबारी युद्ध भविष्य में दुनिया पर अपना दबदबा कायम करने की कोशिश भी है.
एर्दोवान की 2012 के बाद से जिनपिंग के साथ ये आठवीं मुलाकात है. जानकारों के मुताबिक यह मुलाकात खासकर अर्थव्यवस्था और संबंधों में विविधता लाने के लिए हैं. इसका पूर्वी देशों के साथ खेमेबंदी जैसा कोई अर्थ नहीं है.
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इस्तांबुल की कॉक यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक एल्टे एटली कहते हैं, ” तुर्की के चीन के साथ संबंध तुर्की के अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों की जगह नहीं ले सकते. तुर्की के पश्चिमी देशों के साथ बहुत गहरे और फायदेमंद रिश्ते हैं.”
एटली तुर्की और एशिया के संबंधों के विशेषज्ञ हैं. वो कहते हैं कि अंकारा की विदेश नीति अब तुर्की को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की है. इसलिए तुर्की अब सारे देशों से संबंध रखना चाहता है. अब तुर्की शीत युद्ध के समय पश्चिमी देशों के साथ रहने जैसा एकपक्षीय कदम नहीं उठाएगा.
इस्तांबुल सेहिर विश्विद्यालय में अध्यापक कादिर तेमीज कहते हैं कि चीन अब तुर्की के लिए जरूरी देश बनता जा रहा है. इसकी वजह दोनों देशों के सामूहिक आर्थिक हित हैं. सबसे बड़ा अंतर राजनीतिक और भू राजनीतिक है. अगर दोनों देशों के बीच आर्थिक निर्भरता ज्यादा बढ़ती है तो ये राजनीतिक और भू राजनीतिक अंतर जल्दी ही खुलकर सामने आ सकते हैं.