भारत का संविधान महिलाओं को एक सम्मानभरा जीवन जीने के लिए समानता का अधिकार प्रदान करता है।
संविधान द्वारा दिए गए यह अधिकार उन्हें समानता के साथ सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने में सहयोग देते हैं। महिला दिवस के अवसर पर इन अधिकारों को समझें-
घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक शोषण से सुरक्षा का अधिकार देता है। इस अधिकार को पाने के लिए महिलाएं पुलिस के अलावा महिला हेल्पलाइन या फिर अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है।
समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 के तहत महिलाओं को समान काम पर पुरुषों के समान वेतन पाने का अधिकार है। इसके तहत संविधान रोज़गार के लिए काम करने वाली महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन का अधिकार देता है। कम वेतन पाने वाली महिला न्याय के लिए श्रम अदालत में जा सकती है।
मातृत्व लाभ का अधिकार
नौकरीपेशा महिलाओं को बच्चे की सही देखभाल के लिए संविधान द्वारा अधिकार दिया गया है। माँ बनने पर कामकाजी महिलाऐं, मातृत्व लाभ अधिनियम की हक़दार है। साल 1961 में बने इस अधिकार से कामकाजी महिलाओं को मां बनने पर 6 महीने का मातृत्व अवकाश मिलता है। कम्पनी इस दौरान उनके वेतन में किसी तरह की कटौती नहीं कर सकती है और न ही महिला को नौकरी से निकाला जा सकता है।
संपत्ति में अधिकार
संविधान महिला को उसके माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार देता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के मुताबिक़, महिला अपने पिता की संपत्ति या पुश्तैनी जायदाद में बेटे के बराबर उत्तराधिकारी है।
यौन शोषण से सुरक्षा का अधिकार
कामकाजी और नौकरीपेशा महिलाओं को संविधान कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार देता है। यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिनियम के तहत हर कंपनी और संगठन में आंतरिक शिकायत समिति होनी चाहिए जहां महिलाएं शिकायत दर्ज करा सकती हैं।
यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को अपनी पहचान गोपनीय रखने का भी अधिकार है। इस दशा में महिला केवल जिला मजिस्ट्रेट या महिला पुलिस अधिकारी के समक्ष अपना बयान दर्ज करा सकती है।