आपदाओं पर खर्च होने वाली बेतहाशा लागत के चलते कई अन्य सुविधाएं प्रभावित होती हैं। इनमें स्वास्थ्य सेवा, आवास, शिक्षा और रोज़गार आदि क्षेत्रों पर दूरगामी प्रभाव पड़ रहे हैं।
ऐसे में प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारी वित्तीय लागत का सामना करने वाले देशों को कठिन हालात झेलने पड़ रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि इन आपदाओं का वित्तीय बोझ, पूर्व अनुमान से दस गुना अधिक है।
मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र की आपदा जोखिम न्यूनीकरण एजेंसी, UNDRR का कहना है कि एक तरफ़ वर्तमान अनुमान बताते हैं कि भूकम्प, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपात स्थितियों का वैश्विक आर्थिक प्रभाव सालाना लगभग 200 अरब डॉलर है। आगे एजेंसी के लिए वैश्विक जोखिम विश्लेषण विभाग की प्रमुख जेंटी कर्श-वुड ने कहा कि यह आँकड़ा “वास्तविक लागत के केवल एक अंश” को दर्शाता है।
UNDRR के अनुसार, पिछले दो दशकों में आपदाओं से होने वाला वित्तीय नुक़सान दोगुना हो गया है। चरम मौसम की लागत केवल नष्ट हुए बुनियादी ढाँचे में ही नहीं मापी जाती है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और अवसर के खोए हुए वर्षों के रूप में भी मापी जाती है।
आगाह करते हुए चेतावनी के अन्दाज़ में जेंटी कर्श-वुड का कहना है कि वास्तविक लागत 2.3 ट्रिलियन डॉलर के क़रीब है। साथ ही, दुनिया सतत विकास के क्षेत्र में हो रही प्रगति पर “आपदाओं के प्रभाव को लगातार कम करके आँक रही है।”
कर्श-वुड के मुताबिक़, ये घटनाएँ हम सभी को प्रभावित कर रही हैं। एक उदाहरण से इस स्थिति की गम्भीरता को समझाते हुए वह कहती हैं कि अगर किसी व्यक्ति का जन्म 1990 में हुआ तो उसके जीवनकाल में सदी में एक बार आने वाली विनाशकारी बाढ़ का अनुभव करने की सम्भावना 63 प्रतिशत है। जबकि 2025 में पैदा हुए बच्चे के लिए यह सम्भावना 86 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
आपदाओं के कारण 2014 और 2023 के बीच लगभग 24 करोड़ लोग अपने देशों के भीतर ही विस्थापित हुए। चीन और फिलीपीन्स दोनों ही देशों ने 4 करोड़ से अधिक विस्थापित व्यक्तियों की जानकारी दी, जबकि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में यह संख्या 1 करोड़ से 3 करोड़ के बीच थी।