उत्तर प्रदेश के आगरा में पेड़ों की अवैध कटाई का मामला सामने आया है। यहाँ के इको-सेंसिटिव ताज जोन में होने वाली इस कटाई की जानकारी आरटीआई रिपोर्ट से सामने आई है।
रिपोर्ट खुलासा करती है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना ही पिछले आठ वर्षों में इन पेड़ों की कटाई की गई है। आगरा के एक सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से दायर सूचना का अधिकार से इस मामले का खुलासा हुआ है।
आरटीआई दाखिल करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शरद गुप्ता ने आरटीआई से प्राप्त डेटा को चिंताजनक बताया है। उनका कहना है कि ताज ट्रैपेजियम जोन में अवैध कटाई के बावजूद दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं की जा रही है।
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, ताज ट्रैपेजियम जोन में पिछले आठ वर्षों यानी साल 2015 से 2023 के बीच अवैध रूप से 420 पेड़ काटे गए हैं। हालांकि, अधिकतर मामलों में वन विभाग की तरफ से दोषियों को मामूली जुर्माने के साथ छोड़ दिया गया है।
पेड़ों की इस कटाई में सबसे बड़ा नुकसान आगरा की सूर सरोवर बर्ड सेंचुरी को हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, इस बर्ड सेंचुरी से करीब 228 पेड़ काटे जाने की सूचना मिली है।
अन्य जगहों में आगरा का दयालबाग सहित मथुरा का डालमिया बाग इस अवैध कटान से प्रभावित होने वाले इलाक़े हैं।
रिपोर्ट से यह खुलासा भी हुआ है कि कुल मामलों में से केवल 23 में एफआईआर दर्ज की गई। एक्शन के नाम पर वन विभाग द्वारा अधिकतर मामलों में महज़ 90 हज़ार रुपये का जुर्माना वसूला गया है, जिसमे दंड में वसूली गई न्यूनतम राशि 1500 रुपये है।
गौरतलब है कि पेड़ों की कटाई के मामले में सितंबर 2024 में केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा नए जुर्माने की सिफारिश की गई थी। इसके तहत नए जुर्माने के प्रावधान के अनुसार, निजी किसान अगर पेड़ों की कटाई करते पकड़े जाते हैं तो उन पर 5 हज़ार रुपये प्रति पेड़ की दर से जुर्माना लगाया जाएगा। जबकि असुरक्षित पेड़ काटने पर पर जुर्माने की राशि 10 हज़ार रुपये प्रति पेड़ और संरक्षित पेड़ के लिए यह राशि 25 हज़ार रुपये प्रति पेड़ तय की गई थी।
इससे पहले वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ताज ट्रैपेजियम जोन में बिना अनुमति के पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी थी। कोर्ट द्वारा यह निर्देश भी दिया गया था कि शाम 6 बजे से लेकर सुबह 8 बजे के बीच कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा।
5 मार्च 2025 को आगरा में बढ़ती अवैध कटाई की शिकायतों के बाद सुप्रीम कोर्ट की दो जस्टिस की पीठ ने 10,400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ‘ट्री सेंसस’ (वृक्ष जनगणना) करने का आदेश दिया। इस सर्वेक्षण को देहरादून स्थित फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से किया जाना है।