शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्रामीणों के कचरे पर चलने वाली सामुदायिक स्तर की पायरोलिसिस प्रणाली, ‘बायोटीआरआईजी’ गरीबी रेखा से नीचे रह रहे ग्रामीण समुदायों को कई लाभ प्रदान कर सकती है।
एक हालिया अध्ययन में दावा किया गया है कि एक नई अपशिष्ट प्रबंधन तकनीक जो सामुदायिक स्तर पर पायरोलिसिस के ज़रिये ग्रामीण भारतीयों को इनडोर वायु प्रदूषण में कटौती करने, मिट्टी में सुधार करने और स्वच्छ बिजली उत्पन्न करने में मदद कर सकती है। पायरोलिसिस ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में बायोमास जैसे कार्बनिक पदार्थ को गर्म करने की प्रणाली है।
पायरोलिसिस एक प्रकार का केमिकल सायकिल है, जो बचे हुए कार्बनिक पदार्थों को उनके घटक अणुओं में बदल देता है।पायरोलिसिस को थर्मल डिग्रेडेशन भी कहते हैं। इस विधि में एससीबी बायोमास को ऑक्सीकरण एजेंट के बिना करीब 500 से 800 डिग्री सेल्सियस के हाई टेम्प्रेचर के संपर्क में लाया जाता है। इस तापमान पर कार्बोहाइड्रेट तेजी से पायरोलिसिस तेल और बचे हुए चारे के साथ कई गैसीय उप-उत्पाद उत्पन्न करते हैं।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में दावा किया है कि पायरोलिसिस के तीन उत्पाद – जैव तेल, सिनगैस और बायोचर उर्वरक – ग्रामीण भारतीयों को स्वस्थ और हरित जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।
A new waste management technology that allows pyrolysis at a community level could help rural Indians cut indoor air pollution, improve soil health, and generate clean power, a recent study has claimed
By @Zumbish8 https://t.co/d600rNwuXT
— Down To Earth (@down2earthindia) February 28, 2024
पत्र में यह भी कहा गया है कि इससे कृषि भूमि अधिक उत्पादक हो सकती है। शोधकर्ताओं ने प्रारंभ में पूरे ओडिशा में लगभग 1,200 ग्रामीण परिवारों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने ग्रामीणों के खाना पकाने, उनके घरों में बिजली चलाने और खेती के अनुभवों का विश्लेषण किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सर्वेक्षण में शामिल 80 प्रतिशत से अधिक लोग धुआं पैदा करने वाले कोयले के साथ घर के अंदर खाना पकाने के बजाय साफ़ विकल्पों का प्रयोग करना चाहते हैं।
लगभग सभी लोगों ने प्राथमिकता के आधार पर विश्वसनीय ग्रिड बिजली की इच्छा ज़ाहिर की। उनमें से लगभग 90 प्रतिशत जैव-ऊर्जा का समर्थन करने के लिए कृषि अपशिष्ट बेचने के इच्छुक पाए गए।
बायोटीआरआईजी (BioTRIG) प्रणाली वास्तविक दुनिया के लिए बेहद प्रभावी मानी जा रही है। कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चला है कि यह समुदायों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 350 किलोग्राम CO2-eq कम करने में मदद कर सकता है
ग्लासगो विश्वविद्यालय के सिमिंग यू इस शोध प्रोजेक्ट से जुड़े है और बताते हैं कि यह रिपोर्ट विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित है। उनका कहना है कि भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में इस सिस्टम का मामूली उपयोग भी जलवायु, उत्सर्जन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
शोध के लेखकों के अनुसार, सिनगैस और बायो-ऑयल भविष्य में पायरोलिसिस प्रणाली को गर्मी और शक्ति प्रदान करने के साथ स्थानीय घरों और व्यवसायों को बिजली देने के लिए भी उपयोग किये जा सकेंगे।
इस परियोजना में मिट्टी की उर्वरता में सुधार लाने के साथ घरों में खाना पकाने के गंदे ईंधन को बदलने के लिए बायोचार के उपयोग की भी परिकल्पना की गई है।