काठमांडू। प्रमुख मधेसी संगठनों का मंच संघीय गठबंधन द्वारा सरकार के संविधान संशोधन प्रस्ताव को खारिज करने के बाद तराई क्षेत्र में फिर से आंदोलन के गहराने की संभावना बढ़ गई है। nepal
वस्तुत: सरकार ने मधेसी संगठनों के साथ लंबी बातचीत के बाद यह मान लिया था कि बीच का रास्ता निकालने के लिए संविधान में संशोधन कर उनकी कुछ मांगों को मान लिया जाए। हम भूले नहीं है, जब तराई क्षेत्र के आम मधेसी और जनजाति समुदायों के पिछले वर्ष सितंबर से इस वर्ष फरवरी तक चले व्यापक जन आंदोलन से नेपाल में आम वस्तुओं तक के संकट आ गए थे।
वैसे संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर राजनीतिक दलों में भी एक राय नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल यूएमएल इस विधेयक का विरोध कर रही है। प्रचंड सरकार के मंत्रिपरिषद ने संविधान संशोधन का मसौदा जब पारित किया तो कई हलकों में खुशी भी मनाई गई।
फिर संसद सचिवालय ने इस विधेयक को सूचीबद्ध कर दिया। विधेयक में मधेसियों से जुड़े तीन अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों नागरिकता, उच्च सदन में प्रतिनिधित्व और देश के विभिन्न हिस्सों में बोली जाने वाली भाषाओं को मान्यता आदि की मांग को संबोधित करने का प्रावधान किया गया है। हालांकि सरकार पहले से ज्यादा सक्रिय नहीं थी। लेकिन वह संघीय गठबंधन से बातचीत कर रही थी और इनके बीच एक समझौता भी हुआ।
विधेयक में नवलपारसी, रूपानदेही, कपिलवस्तु, बांके, डांग, बरदिया को अन्य तराई प्रांत में शामिल करने का प्रस्ताव है, जिसे पांचवां प्रांत कहा जाएगा। सरकार ने यह भी घोषणा किया है कि सीमाओं से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए आयोग बनया जाएगा, जो पांच जिलों झापा, मोरांग, सुनेसरी, कईलाली और कंचनपुर से जुड़ी समस्याओं का समाधान सुझाएगा। मधेसियों ने अपनी मांगों को आधा अधूरा स्वीकारने और उनके साथ धोखा का आरोप लगाया है।
इसे देखते हुए आवश्यक हो गया है कि सरकार मधेसी संगठनों के साथ फिर से बात करें और उनकी प्रमुख मांगों मधेसियों के लिए अलग प्रांत, उनको उचित प्रतिनिधित्व, नागरिकता, मधेसी भाषाओं को मान्यता देने, सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने आदि पर गंभीरता से विचार कर रास्ता निकाले।