इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 से पता चलता है कि देश में कानून व्यवस्था के मामले में कर्नाटक पहले नंबर पर है जबकि पश्चिम बंगाल सबसे पिछले पायदान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक कुछ दक्षिणी राज्य विकास की दौड़ में आगे हैं, लेकिन वहीं उत्तरी राज्य पिछड़ते नजर आ रहे हैं।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 की यह रिपोर्ट पुलिस, ज्यूडिशियरी, जरूरतमंदों को कानूनी मदद मुहैया कराने के साथ कैदियों के लिए बेहतर इंतजाम जैसे मुद्दों को आधार बनाकर तैयार की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘जस्टिस सिस्टम में सुधार संभव है।’ इसके लिए स्टाफिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपरेंसी पर ध्यान देना होगा।
भारत का जस्टिस सिस्टम कितना बेहतर है, इस बात की जानकारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 के ज़रिए सामने लाने का प्रयास किया गया है। रिपोर्ट राज्यों की पुलिस, अदालत, जेल और कानूनी मदद जैसे चार मुख्य विषयों पर फोकस करती है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि कुछ राज्यों में किसी एक क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन देखने को मिला है जबकि ऐसे राज्य बहुत कम हैं जो सभी क्षेत्रों में बेहतर कर रहे हैं।
बड़े राज्यों में कर्नाटक सबसे आगे है वहीँ सिक्किम को छोटे राज्यों में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला माना गया है। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अभी भी कुछ समस्याएं हैं जो लोगों को न्याय दिलाने में प्रभाव डालती हैं, वहीँ संसाधनों के असर से पता चला है कि जिन राज्यों में सुधार, विविधता और संसाधनों पर ध्यान दिया जाता है, वहां न्याय मिलने की संभावना अधिक होती है।
सरकारी आंकड़ों के आकलन के आधार पर तैयार रिपोर्ट में शामिल डेटा 100 से अधिक मापदंडों का इस्तेमाल करते हुए लिया गया है। इससे पता चलता है कि कानून के ज़रिए सभी को समान न्याय मिलने का वादा अभी भी पूरी तरह से सच नहीं हुआ है।
रिपोर्ट बताती है कि कुछ राज्य लगातार निवेश और सुधार करके बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। ये राज्य दूसरों के लिए एक उदाहरण हैं। वे दिखाते हैं कि अगर प्रयास किए जाएं तो न्याय व्यवस्था को सुधारा जा सकता है।
लोगों को कानूनी मदद मुहैया कराने के साथ पुलिस, ज्यूडिशियरी, कैदियों के लिए बेहतर इंतजाम के मोर्चे पर सुधार के साथ बिहार और छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर हैं। 2022 से अब तक 40 से ज़्यादा मामलों में सुधार हुआ है। केरल, ओडिशा और कर्नाटक जैसे बेहतर राज्यों ने भी लगातार सुधार किया है।
न्यायपालिका को देश के जस्टिस सिस्टम का एक जरूरी हिस्सा बताते हुए यह रिपोर्ट बताती है कि हर स्तर पर जजों की कमी है। यहां तक कि केरल जैसे राज्य में, जो न्याय देने में अच्छा माना जाता है, वहां भी हाई कोर्ट में 10 में से 1 जज कम हैं। कर्नाटक में तो स्थिति और भी खराब है। यहाँ हर 5 में से 1 जज का पद खाली है।
इस मामले में उत्तर प्रदेश में आधे जजों की कमी देखने को मिली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायपालिका के हर स्तर पर खाली पद भरे जाने जरूरी हैं। ये स्थिति न्याय मिलने में देरी का कारण बन सकती है।
कानूनी सहायता करने वाले वॉलंटियर्स की संख्या में भी कमी देखि गई है। वर्ष 2019 – 2025 के बीच इसमें 38% की गिरावट आई है। भारत के 25 उच्च न्यायालयों में 51% मामले 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।
रिपोर्ट से पता चलता है कि दिल्ली में जेलों की हालत सबसे खराब है। देशभर की जेलों में ज़्यादातर कैदी विचाराधीन हैं। यह वह कैदी हैं जिनका अभी तक कोर्ट में केस चल रहा है और फैसला नहीं हो सका है।
तिहाड़ जेल परिसर में दो जेलों में क्षमता से चार गुना ज़्यादा कैदी हैं। इन जेलों में कैदी ठूंस कर भरे गए हैं। उत्तर प्रदेश में भी जेलों में बहुत भीड़ है। हर चार कैदियों में से तीन से ज़्यादा यानी 76% कैदी विचाराधीन हैं। 2012 से ऐसे कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है।