नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर ने बुधवार (22 फरवरी) को कहा कि न्यायपालिका को मामलों के लंबित होने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता । Jagdish
इसकी बजाए सरकार को अपने द्वारा दायर किए जाने वाले मुकदमों की संख्या कम करनी चाहिए।
इस टिप्पणी को सरकार को मिली फटकार के रूप में देखा जा रहा है।
प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रपति भवन में एक किताब के विमोचन के मौके पर बोलते हुए कहा कि कई बार सरकार के किसी विभाग के लिए यह फैसला करना बहुत मुश्किल होता है कि कोई मामला दायर किया जाए या नहीं।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी में कहा, ‘और चूंकि बहुत कुछ दांव पर होता है और कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता, इसलिए आमतौर पर यह (मामला) दायर करने का फैसला लिया जाता है।
मैं इस तरह के मामले दायर करने के लिए बिल्कुल भी सरकार को दोषी नहीं ठहराता। मुझे यकीन है कि मैं सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकता।’
प्रधान न्यायाधीश ने अपनी बात का गलत अर्थ ना निकाले जाने के लिए बार-बार जोर देते हुए कहा कि राष्ट्रीय अभियोग नीति सरकार ने तय की है और ‘हम उम्मीद करते हैं कि सरकार की तरफ से दायर होने वाले मुकदमों को लेकर किसी तरह का नियंत्रण होगा, सरकार न्यायपालिका में सबसे बड़ी हितधारक है।’
खेहर ने कहा, ‘क्या मैं एक सुझाव दे सकता हूं, एक ऐसी व्यवस्था हो सकती है जहां कोई स्वतंत्र एजेंसी, संभवत: कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश या कुछ प्रतिष्ठित पेशेवर जिन्हें आप दोबारा फैसला लेने के लिए सभी स्तरों, चाहे वह जिला न्यायालय हो या उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय, पर चुन सकते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘और अगर हम उन सभी मुकदमों में केवल दस प्रतिशत की भी कमी कर दें तो यह हमारे लिए काफी मददगार होगा। एक बार फिर मुझे गलत ना समझें, यह किसी तरह की आलोचना का विषय नहीं है।’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि अपील दायर करने में कई कारणों से देरी होती है, हमेशा न्यायापालिका को ही इसके लिए दोषी ठहराया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘जब अंतिम फैसला लिया जाता है, अपील दायर करने में पांच और महीने का समय लगता है और सीमा अवधि 30 दिन है।
इसलिए मुझे समझ नहीं आता कि इस देरी को कोई भी कभी भी कैसे समझा भी सकता है, लेकिन इसकी मार हम पर ही पड़ती है।’
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