यूरोप में 2015 के शरणार्थी संकट के बाद मुसलमानों की संख्या अचानक बढ़ गई है। दस लाख से ज्यादा मुसलमान अचानक जर्मन समाज का हिस्सा बन गए। पहनावे और रहन-सहन के साथ-साथ मस्जिदों से अजान दिए जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं।
मुसलमानों के लिए जहां मस्जिद से आने वाली अजान की आवाज रोजमर्रा की दिनचर्या का हिस्सा है, वहीं यूरोप में रहने वाले बहुत से लोग उसे सिर्फ लाउडस्पीकर से होने वाला शोर समझते हैं जिससे उनकी नींद, आराम और सुकून में खलल पड़ती है।
कई और यूरोपीय देश भी पिछले दिनों स्वीडन के एक शहर में अपने समाज में आने वाले ऐसे बदलाव और टकराव से गुजर रहे हैं। वेक्सयो में स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद पुलिस ने एक मस्जिद को जुमे की नमाज के लिए अजान लगाने की अनुमति दे दी। आम चुनाव से ठीक पांच महीने पहले वहां यह फैसला राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया।
कई राजनेता पुलिस के फैसले पर सवाल उठाते हुए कह रहे हैं कि इससे समाज में सांस्कृतिक तनाव बढ़ेगा। हालांकि मस्जिद के इमाम का कहना है कि अजान को ठीक वैसे ही समझा जाना चाहिए जैसे चर्च की घंटियां। लेकिन स्वीडन में हुए एक सर्वे में 60 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मस्जिदों से होने वाली अजान पर बैन लगना चाहिए। वेक्सयो में पुलिस ने हफ्ते में सिर्फ एक दिन और वह भी तीन मिनट 45 सेकंड के लिए अजान लगाने की अनुमति दी है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि आसपास रहने वाले लोग अपने घरों में इतनी देर भी क्यों अजान सुनें। वेक्सयो की मस्जिद स्वीडन की तीसरी ऐसी मस्जिद है जिसे अजान की अनुमति मिली है।
इससे पहले, पश्चिमी जर्मनी में ओएर एरकेंशविक शहर में एक ईसाई दंपत्ति स्थानीय मस्जिद से होने वाली साप्ताहिक अजान को रुकवाने में कामयाब रहा। मस्जिद से छह सौ मीटर की दूरी पर रहने वाले इस दंपत्ति ने अदालत में दलील दी कि अजान की आवाज से उनके धार्मिक अधिकारों का हनन होता है। उन्होंने कहा, “अजान से होने वाले शोर से ज्यादा हम इस बात को लेकर चिंतित है कि इसमें अल्लाह को हमारे ईसाइयों के ईश्वर से ऊपर रखा गया है। यहां ईसाई माहौल में पले बढ़े किसी भी ईसाई के लिए यह स्वीकार्य नहीं होगा।” अदालत ने धार्मिक मुद्दे पर तो कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन मस्जिद से अजान की अनुमति देने की प्रक्रिया में खामियों का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दी।