मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस पार्टी पर परिवारवाद औऱ वंशवाद का आरोप ख़त्म हो गया है। अध्यक्ष पद के नामांकन के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में खरगे ने अपना नजरिया साफ़ किया। उन्होंने कहा वह गांधी परिवार का सम्मान हमेशा करेंगे, मार्गदर्शन भी लेंगे। उन्होंने बताया पांच दशकों की राजनीति का उनका अपना अनुभव है और वह जरूरी फैसले लेने में खुद सक्षम हैं। खरगे को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी देने की रस्म 26 अक्तूबर को अदा होगी।
मौजूदा सत्ता की ओर से गांधी परिवार पर देश की सबसे पुरानी पार्टी को लेकर वंशवाद का माहौल था। इस चुनाव से ये साफ़ हो गया है कि पार्टी में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होता है।
80 वर्षीय खरगे के पास सियासत का बेहतरीन अनुभव है। उम्मीद की जा रही है कि वह पार्टी को जोड़ने और असंतुष्टी को दूर करने का प्रयास करेंगे।
अध्यक्ष चयनित होने के बाद उनके प्रतिद्वंदी शशि थरूर ने उनके घर जाकर उनसे मुलाकात की और शुभकामनाएं दीं। मल्लिकार्जुन और शशि थरूर का चुनाव के लिए मैदान में बने रहना और खरगे को 8 गुना वोटों से मिलने वाली जीत से भी यही साफ होता है कि इस समय आलाकमान की भूमिका में उन्हें ही पसंद किया गया है। खरगे ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार हैं। जबकि थरूर की उपस्थिति बताती है कि पार्टी को नई दिशा देने के साथ मजबूत करने से जुड़े उनके कैंपेन ने भी कांग्रेस की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती दी।
80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खरगे के पास सियासत का बेहतरीन अनुभव है। उम्मीद की जा रही है कि पार्टी को जोड़ने की तर्ज पर काम करते हुए खरगे भीतर पनपने वाली असंतुष्टी को दूर करने का प्रयास करेंगे।
अध्यक्ष पद की दावेदारी के साथ बीते एक महीने से खरगे ने देशभर में लगातार दौरे करते हुए ये समझने की कोशिश की है कि आखिर पार्टी में दिक्कत कहाँ पर है और उसका निपटारा कैसे किया जाये।
अपने कार्यक्रम के तहत 26 को पार्टी अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद खरगे हिमाचल का दौरा करेंगे फिर गुजरात जायेंगे। इसके अलावा राहुल गांधी के साथ भी खरगे कुछ रैलियों में जाएंगे।
इन तमाम कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार हो रही है लेकिन सबसे अहम जो सवाल हैं वो यही कि क्या खरगे के आने के बाद से कांग्रेस का चेहरा बदलेगा? पार्टी के भीतर जो निराशा और हताशा का आलम है, वो कैसे दूर होगा और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद जो एक नया जोश नजर आ रहा है, उसे खरगे कैसे अपनी ताकत के रूप में तब्दील कर पाएंगे?
2024 के टारगेट के साथ उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की हालत उनका प्रमुख मुद्दा है। ये सारे काम उन्हें सीमित समय में अपनी ज़िम्मेदारी सँभालते हुए एक चुनौती के रूप में करने हैं।