‘अन्तरराष्ट्रीय हिमनद संरक्षण सम्मेलन’ ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में 29 से 31 मई 2025 तक मनाया जा रहा है। इस आयोजन के माध्यम से दुनिया का ध्यान तेज़ी से पिघलते ग्लेशियरों की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
‘दुशाम्बे हिमनद घोषणा’ में शामिल ठोस प्रतिबद्धताओं और रणनैतिक सिफ़ारिशों को, COP30 में प्रस्तुत किया जाएगा। इस सम्मेलन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र, एशियाई विकास बैंक और यूनेस्को जैसे अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों के सहयोग से किया गया है।
ताजिकिस्तान के प्रधानमंत्री कोख़िर रसूलज़ोदा ने चेतावनी के अन्दाज़ में दुशान्बे ‘हिमनद संरक्षण सम्मेलन’ में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि धरती पर मौजूद ग्लेशियर, विश्व के 75 प्रतिशत ताज़ा पानी के भंडार हैं। ये बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन, जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ी से पिघल रहे हैं और इनकी रक्षा के लिए त्वरित वैश्विक कार्रवाई आवश्यक है।
वैश्विक स्तर पर 2 लाख 75 हज़ार से अधिक हिमनद लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ढकते हैं, और इनमें बर्फ़ की चादरों के साथ मिलकर, वैश्विक ताज़ा पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा संग्रहित होता है।
संयुक्त राष्ट्र की साझीदार संस्था ‘विश्व हिमनद निगरानी सेवा’ के अनुसार, पिछले साल स्कैंडिनेविया, नॉर्वे के स्वालबार्ड द्वीप और उत्तर एशिया के हिमनदों में अब तक की सबसे अधिक बर्फ़ हानि दर्ज की गई।
हिमनदों ने, वर्ष 1975 से अब तक 9 हज़ार अरब टन से अधिक बर्फ़ का द्रव्यमान (mass) खो दिया है, जबकि जिनमें ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ़ चादरें शामिल नहीं हैं।
हिमनदों का पिघलना केवल जल संसाधनों के संकट को ही नहीं दर्शाता, बल्कि इससे भूस्खलन और झील विस्फोट जैसी आपदाओं का ख़तरा भी बढ़ता है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह वर्षों में से पाँच वर्षों में, हिमनदों का रिकॉर्ड स्तर पर पिघलना दर्ज किया गया है, और 2022 से 2024 के बीच, अब तक का सबसे बड़ी हिमनद द्रव्यमान हानि देखी गई।
वर्ल्ड मेर्टोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन की महासचिव सेलेस्ट साउलो ने विज्ञान, डेटा साझा करने और राजनैतिक इच्छाशक्ति के बीच पुल बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। उन्होंने चेतावनी है कि हिमनदों का पिघलना सिर्फ़ बर्फ़ का नुक़सान नहीं, बल्कि मानव जीवन, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गम्भीर ख़तरा है।
वैश्विक स्तर पर 2 लाख 75 हज़ार से अधिक हिमनद लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ढकते हैं, और इनमें बर्फ़ की चादरों (ice sheets) के साथ मिलकर, वैश्विक ताज़ा पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा संग्रहित होता है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल विकास रिपोर्ट 2025 के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्र दुनिया की वार्षिक ताज़ा जल आपूर्ति का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा उपलब्ध कराते हैं।
विश्व की दो अरब से अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से पर्वतों से प्राप्त जल पर निर्भर करती है। इन क्षेत्रों में चरवाही, वानिकी, पर्यटन और जलविद्युत उत्पादन जैसे क्षेत्र जल-आधारित गतिविधियों पर निर्भर हैं।
लेकिन आज स्थिति गम्भीर है। विकासशील देशों के ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्रों में आधे से अधिक लोग, खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जिनमें महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हैं। पहाड़ी हिमनदों का तेज़ी से पिघलना, सिंचाई, जैव विविधता और जल सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव डाल रहा है।