भारत में कोरोना महामारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन इस महामारी से निपटने के बीच में कुछ ऐसी भी खबरें आ रही हैं जो चिंताजनक हैं. अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में कोरोना मरीजों के वार्ड धर्म के आधार पर बांट दिए गए हैं.इस बात को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रॉल्लिंग का सिलसिला जारी है
गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में कोरोना मरीजों और संदिग्धों के लिए 1,200 बेड की व्यवस्था की गई है, लेकिन इस सरकारी अस्पताल में हिंदू और मुस्लिम मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बना दिए गए हैं. अस्पताल का कहना है कि ऐसा सरकार के कहने पर किया गया है जबकि सरकार इससे इनकार कर रही है. मरीजों का साफ तौर पर कहना है कि रविवार 12 अप्रैल की शाम को आइसोलेशन वार्ड में हिंदू-मुस्लिम के आधार पर उन्हें बांटा गया. जानकार कहते हैं कि यह घटना अभूतपूर्व है और आजाद भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ.
The Health Deptt.of Govt.of Gujarat has clarified that no segregation is being done in civil hospital on the basis of religion.Corona Patients are being treated based on symptoms, severity etc.and according to treating doctors' recommendations.
— PIB in Gujarat 🇮🇳 (@PIBAhmedabad) April 15, 2020
सिविल अस्पताल में अब तक 150 कोविड-19 मरीज हैं. जबकि 36 और लोगों का कोरोना वायरस के संक्रमण लिए टेस्ट किया गया है. फिलहाल वे सभी अलग-अलग वार्ड में रह रहे हैं. अस्पताल के एक सूत्र ने डीडब्ल्यू को बताया कि 150 में से कम से कम 40 मरीज मुस्लिम समुदाय से हैं. उन्हें पिछले हफ्ते अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
सरकारी निर्देश
मुस्लिम मरीज के परिवार के एक सदस्य ने डीडब्ल्यू को बताया कि रविवार की शाम अस्पताल प्रशासन ने उन्हें कहा कि हिंदू और मुस्लिम मरीज अलग अलग वार्ड में रहेंगे. मुस्लिम मरीजों को तुरंत ही वहां से हटा दिया गया. अस्पताल अधीक्षक डॉ. गुणवंत एच राठौड़ ने एक अंग्रेजी अखबार से कहा कि यह काम राज्य सरकार के दिशा निर्देश के आधार पर किया गया है. उन्होंने आगे किसी भी टिप्पणी से इनकार कर दिया. हालांकि, उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल ने इस घटना की जानकारी होने से इनकार कर दिया.
सूत्रों के मुताबिक अस्पताल प्रशासन ने शुरुआत में 28 मरीजों का नाम बुलाकर उन्हें दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया. ये सभी मरीज मुसलमान थे. डीडब्ल्यू से बात करते हुए अस्पताल के एक कर्मचारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, “यह दोनों समुदायों की भलाई के लिए है.” इस कर्मचारी का कहना है कि दिल्ली में तब्लीगी जमात के लोगों से कोरोना संक्रमण फैलने की कथित बातों ने हिंदुओं में ‘डर’ पैदा कर दिया है. कर्मचारी का कहना है कि हो सकता है कि इस वजह से उन्हें अलग-अलग वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया हो ताकि कोई अप्रिय घटना ना घट सके.
विवादास्पद फैसला
स्पताल द्वारा उठाए गए इस कदम से काफी विवाद पैदा हो गया है. यह अब तक साफ नहीं हो पाया है कि किसके निर्देश पर सिविल अस्पताल ने यह कदम उठाया. संवैधानिक विशेषज्ञ अमल मुखोपाध्याय डीडब्ल्यू से कहते हैं, “गुजरात के अस्पताल में जो हुआ वह अमानवीय और गैर संवैधानिक है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 से लेकर 25 में स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में उल्लेख है. धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान की प्रस्तावना में भी है. मरीजों की पहचान धर्म और जाति के आधार पर करना दंडनीय अपराध है. मरीजों के साथ इस तरह से नहीं किया जा सकता है.”
डॉ. सत्यकी हलदर भी मुखोपाध्याय के विचारों का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि मरीजों का कोई धर्म नहीं होता है. हलदर कभी सरकारी अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक का पद संभाल चुके हैं. वह कहते हैं, “मरीजों का कोई धर्म नहीं होता है. एमबीबीएस पास करने के बाद डॉक्टरों को मरीजों के इलाज की शपथ दिलाई जाती है. यह नियम पूरी दुनिया में लागू है. डॉक्टर के सामने सब बराबर हैं. गुजरात में जो कुछ हुआ वह चिकित्सा के नैतिक मूल्यों को चुनौती देता है.” हालांकि बीजेपी नेता शायंतन बोस इसमें कोई राजनीति से इनकार करते हैं.
वह कहते हैं, “अगर डॉक्टरों को लगता है कि हिंदू-मुसलमान को अलग रखने से इलाज में बेहतरी होगी तो मुझे इसमें कोई खराबी नजर नहीं आती है. सरकार ने फैसला डॉक्टरों की सलाह पर ही लिया है.” हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि वह ऐसी सलाह नहीं दे सकते हैं. उनके मुताबिक बीमारी और इलाज में धर्म नहीं देखा जाता है.