सर्वोच्च न्यायालय ने साइनबोर्ड पर उर्दू भाषा के प्रयोग के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि उर्दू एलियन भाषा नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य में एक नगर परिषद के नाम वाले बोर्ड पर उर्दू के प्रयोग को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
मीडिया के अनुसार, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन ने महाराष्ट्र के एक पूर्व क्षेत्रीय पार्षद की याचिका पर सुनवाई की। इसमें नगर परिषद के नाम वाले बोर्ड पर मराठी के साथ उर्दू के प्रयोग को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि नगर परिषद का नाम केवल मराठी में ही हो सकता है तथा साइनबोर्ड पर भी उर्दू का प्रयोग स्वीकार्य नहीं है।
मीडिया के अनुसार, याचिकाकर्ता को इससे पहले इस संबंध में मुंबई उच्च न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली थी, जिसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहां भी उसकी याचिका खारिज कर दी गई।
याचिकाकर्ता वर्षाताई संजय बागड़े इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। साल 2021 में यह भी फैसला सुनाया था कि महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण आधिकारिक भाषा अधिनियम, 2022 या किसी अन्य कानूनी प्रावधान के तहत उर्दू का इस्तेमाल गलत नहीं है।
अदालत ने कहा है कि भाषा धर्म नहीं है और उर्दू को मुसलमानों की भाषा मानना खेदजनक है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि उर्दू का जन्म भारत में हुआ है और यह मराठी और हिंदी की तरह ही एक इंडो-आर्यन भाषा है।
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि उर्दू हिंदुस्तान में अलग-अलग सांस्कृतिक परिवेश से जुड़े लोगों की ज़रूरत की वजह से डेवलप हुई और फली-फूली, जो एक दूसरे के साथ ख्यालात का इजहार करना चाहते थे और बातचीत का इज़हार करना चाहते थे।
सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि भाषा धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। भाषा का संबंध समुदाय, क्षेत्र और लोगों से होता है, किसी धर्म से नहीं।