लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव सत्ता के लिए जोड़ तोड़ की हर कोशिश चल रही है। कोई भी दल कोई भी मौक़ा चूकना नहीं चाह रहा है । कहीं पाले में संजोए रखने की जद्दोजहद तो कहीं सेंधमारी का जतन…। Assembly
मामला 23 फीसदी दलित वोट बैंक का है। यूपी में 85 विधानसभा सीटें दलितों के लिए सुरक्षित हैं। इन्हें एक तरह से सत्ता की सीढ़ी माना जा सकता है। इसके अलावा बमुश्किल 60 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोटर 10 हजार से कम हैं।
कांग्रेस की कोशिश : 2017 के विधानसभा चुनाव में दलित एक बार फिर मजबूती से पार्टी के साथ खड़े हों, इसके लिए कांग्रेस ने पहले तो प्रदेश भर में ‘भीम ज्योति यात्रा’ निकाली, फिर सुरक्षित सीटों पर ‘शिक्षा, सुरक्षा, स्वाभिमान यात्रा’ का आयोजन किया।
खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों से सीधे संवाद साधा।
भाजपा की जोर आजमाइश: बीआर अंबेडकर से लेकर संत रविदास सहित अन्य दलित महापुरुषों की जयंती पर भाजपा ने विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए।
दलित समरसता भोज भी दिया, जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के दूसरे बड़े नेता शरीक हुए।
सपा के दांव-पेच: मंडलीय स्तर पर सम्मेलनों के आयोजन के साथ कैबिनेट में दलितों को तवज्जो दी और पार्टी संगठन में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाया। 6 दिसंबर को अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस पर यूपी में छुट्टी की घोषणा की।
बसपा की जद्दोजहद: प्रदेश भर में दलित महापुरुषों के जन्मदिन और परिनिर्वाण दिवस पर बड़े आयोजन किए। बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुद कई कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।