अयोध्या. अयोध्या और अक्टूबर। लगता है एक ही शब्द के दो हिस्से हो गए हैं। जन्मभूमि में तैनात सुरक्षाकर्मी हों, कारसेवकपुरम् में मौजूद संघ कार्यकर्ता हों, कार्यशाला के कारीगर हों या रेड जोन के बाहर वाली सड़क पर रह रहे मुद्दई इकबाल अंसारी हों।
सब की जुबान पर अयोध्या के साथ अक्टूबर जरूर आता है। अक्टूबर में कुछ तो होगा। कुछ तो जरूर करेंगे। कुछ कोर्ट करेगा। कुछ हमारी तैयारी है। हकीकत यह है कि मंदिर के लिए तराशे हुए पत्थरों पर काई जम गई है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं। उम्मीद है कि अयोध्या पर कोई फैसला सुनाकर जाएंगे। मंदिर के पक्ष में फैसला आता है तो तैयारी पूरी है। मंदिर कार्यशाला में 65% काम पूरा हो चुका है। लगातार हो भी रहा है। अक्टूबर तक कारीगर बढ़ा दिए जाएंगे। लेकिन फैसला मंदिर के पक्ष में नहीं आया तो? यह सवाल सुनते ही लोग सन्न रह जाते हैं। सांस लेकर, कुछ देर चुप रहने के बाद कहते हैं- उसकी भी तैयारी तो है ही। विश्व हिंदू परिषद की अपनी तैयारी है और संघ ने भी पूरा जोर लगा रखा है।
आरएसएस अपने कार्यकर्ताओं की मदद से मुसलमान और बाकी धर्म के लोगों को राम मंदिर के पक्ष में तैयार करने के लिए अलग-अलग कार्यक्रम चला रहा है, जिसमें भाषण और रैलियां प्रमुख हैं।
अयोध्या के तपस्वी स्वामी ने आमरण अनशन की धमकी दी है। यहीं के ही अभयदाता हनुमान मंदिर में 108 बार हनुमान जाप चल रहा है, ताकि फैसला उनके हक में आए।
लोगों का कहना है कि फैसला हक में आया तो दावा है कि 48 घंटे में मंदिर का ढांचा खड़ा कर देंगे। ढांचे में 100 पिलर होंगे जिनमें से 22 तैयार हो चुके हैं। 21 पर काम चल रहा है। हर पिलर का अपना नंबर है, जिसे सीधे मंदिर वाली जगह पर ले जाकर खड़ा करना है।
अयोध्या की राममंदिर कार्यशाला में 1992 से पत्थरों को तराशने का काम चल रहा है। ज्यादातर तराशे पिलर और पत्थरों पर काई जम गई है। कुछ पर वहां आने वाले टूरिस्टों ने अपने नाम उकेर दिए हैं।
वहां मौजूद असम के कारीगरों के मुताबिक, 65% काम पूरा हो चुका है। सात कारीगरों की टीम बिना छुट्टी काम कर रही है। पिछले साल 22 ट्रक पत्थर आए थे। मंदिर का फैसला आया तो हर दिन 25 कारीगर काम पर लगा दिए जाएंगे।
ओपन कार्यशाला का क्रेज लोगों में काफी है। हर दिन 1000 लोग इसे देखने आते हैं। गाइड उन्हें कई बार रामलला के दर्शन से पहले यहां ले आते हैं और वहां रखे मॉडल दिखाते हुए कहते हैं, “अब हम जहां रामलला के दर्शन को जाएंगे, वहां ऐसा ही मंदिर बनेगा।”
मंदिर पर क्या फैसला होगा, यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। बाबरी मस्जिद के मुद्दई इकबाल अंसारी कहते हैं, “जिसके पास सबूत हैं, फैसला उसी के हक में होगा। हमारे पास सभी कागज हैं सबूतों वाले।” उनके पिता कहते थे रामलला टेंट में रहते हैं और मंदिर की लड़ाई लड़नेवाले महलों में। इकबाल इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं अयोध्या में सैकड़ों मंदिर हैं और वहां कई मंदिरों में रामलला भी हैं। फिर इसी जगह पर बवाल क्यों? यदि मंदिर होता ही तो मस्जिद क्यों बनाई जाती? खैर जिक्र उनकी बातों में भी अक्टूबर का ही आता है। जिसे वे ये कहकर टाल जाते हैं कि उन्हें मोदी जी पर भरोसा है, क्योंकि मोदी जी देश में हर किसी के प्रधानमंत्री हैं।
इसी बीच, इंटेलिजेंस ने सुरक्षाबलों को खास हिदायत दी कि आनेवाला समय अयोध्या के लिए क्रिटिकल है। यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पास ही में इलाहाबाद से रैपिड एक्शन फोर्स बुलाई जाएगी।
अयोध्या में एक दिन भी ऐसा नहीं जाता, जब 70 हजार लोग राम जन्मभूमि के दर्शन करने ना पहुंचें। रामनवमी जैसे खास दिन पर यह संख्या चार लाख तक पहुंच जाती है। इनमें ज्यादातर आसपास के गांवों से आने वाले लोग हैं। टेंट में बैठे रामलला पर पहरा है बंदूक थामे सीआरपीएफ कमांडोज का, जिनमें अब महिला कमांडो भी शामिल हैं। इनकी संख्या 1000 के करीब है जो 250-250 के बैच में 24 घंटे ड्यूटी देते हैं। इसके अलावा आने-जाने वालों की चैकिंग के लिए पुलिस मौजूद है।
बाहर लोहे की 10-15 फुट ऊंची जालियों का पिंजरा है जिसमें से होकर दर्शन करनेवाले लोग जाते हैं। तीन-चार बार मेटल डिटेक्टर और इतने ही बार पुलिस जवान तलाशी लेते हैं। फोन तो भूल ही जाइए, पेन तक ले जाने की इजाजत नहीं। इस मशक्कत के बाद कुल 60 सेकंड आप उस टेंट के सामने खड़े हो पाते हैं, जहां भगवान राम की मूर्तियां हैं और जिसे राम जन्मभूमि कहते हैं।