देश में होने वाली मौतों की असली वजह सामने नहीं आ पाती है। केवल 3 फीसदी मौत डाक्टर की जानकारी में आती है और उनके आधार पर सम्बंधित नीतिया तैयार की जाती है। इनमे से 72 फीसद मौतों के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिल पाती।
हिंदी दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस स्टडी में भारत में मरने वालों के रजिस्ट्रेशन पर जानकारी दी गई है। अध्यन के मुताबिक़ मौत के कारणों को लेकर 72 फीसद मामलों की इस अनदेखी का परिणाम यह होता है कि डॉक्टर के माध्यम से इन्हे प्रमाणित नहीं किये जाने के कारण इस सम्बन्ध में जो भी नीति बनाई जाती है उसमे केवल 23 फीसदी मौतों को ही शामिल किया जाता है और शेष 72 फीसद पर घरवाले खुद ही फैसला ले लेते हैं।
बीते कुछ वर्षों से भारत में मृत्यु पंजीयन तेजी से बढ़ा है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि अब इन मौतों के संबंध में सही जानकारी सामने आ सकेगी।
डब्ल्यूएचओ के इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि हमारे देश में कंप्यूटर की जगह में चिकित्सक प्रमाणित मौखिक शव परीक्षण ज्यादा कारगर है और यही चलन में है।
डब्ल्यूएचओ के एक अध्ययन के अनुसार भारत में कंप्यूटर की तुलना में चिकित्सक प्रमाणित मौखिक शव परीक्षण ज्यादा कारगर है। इस अध्यन में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और डब्ल्यूएचओ के साथ दिल्ली एम्स तथा आईसीएमआर सहित कई संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हैं। अध्यन में नागरिक पंजीकरण प्रणाली रिपोर्ट (सीआरएस) 2020 के हवाले से बताया गया कि बीते कुछ वर्षों से भारत में मृत्यु पंजीयन तेजी से बढ़ा है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि अब इन मौतों के संबंध में सही जानकारी सामने आ सकेगी।