नई दिल्ली : दो मार्च से किसानों के मुद्दों पर वामपंथी संगठन देश भर में सड़कों पर उतरेंगे. आंदोलन का अहम मुद्दा भूमि अधिग्रहण होगा. वामपंथी संगठन दो मार्च को राजस्थान विधानसभा का घेराव करेंगे. Vampanthi
इसके बाद 13 मार्च से रांची में किसानों का बड़ा सम्मेलन होगा. ऑल इंडिया किसान सभा ने कई संगठनों और एनजीओ को साथ लेकर इस मसले पर देश भर में किसानों को जमा करने की योजना बना ली है.
सीपीएम नेता और किसान सभा के महासचिव हन्नान मुल्ला ने कहा कि सबसे ज्यादा विदर्भ के किसानों ने आत्महत्या की है.
प्रधानमंत्री कहते हैं कि किसानों की आय दोगुनी होगी.
जब फसल की सही कीमत नहीं मिल रही है तो आय कैसे दोगुनी होगी, इसका गणित प्रधानमंत्री मोदी समझा दें. क्योंकि सरकार ने जो जमीन अधिग्रहण कानून बनाया है. वो तो ब्रिटिश राज से भी बदतर और अमानवीय है.
अंग्रेजों ने भी फसल की जमीन अधिग्रहित नहीं की थी. लेकिन ये सरकार तो इस मामले में पूरी तरह कट्ठर है. क्योंकि अधिग्रहण की तीन अहम बुनियादी शर्तों का पालन नहीं किया गया. जिनमें किसानों की मर्जी और उनको समुचित मुआवजा देना और मल्टीक्रॉप फसल वाली जमीन ना लेना शामिल है.
उन्होंने कहा कि किसानों और खेती बाड़ी के प्रति सरकारों की गलत नीतियों की वजह से ना केवल किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं बल्कि असम और पश्चिम बंगाल में दो-दो और छत्तीसगढ़ में सात किसानों को सरकार का विरोध करने की वजह से पुलिस की गोलियों का शिकार होना पड़ा.
ये दुर्भाग्यपूर्ण है. झारखंड में भी आदिवासी किसानों की जमीनें ली जा रही हैं. 47 लाख आदिवासियों ने जमीन के लिए आवेदन किया जिसमें से सिर्फ 27 लाख आदिवासी किसानों को ही जमीन मिली. वो भी अधिग्रहित जमीन के मुकाबले काफी खराब जमीन मिली.
उन्होंने ये भी कहा कि केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के भयंकर सूखे से पीड़ित किसानों को अब तक पूरा मुआवजा नहीं मिला. कम से कम उनकी फसल की लागत से कुछ ज्यादा मोल तो मिलना चाहिए था.