इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए आरोपी को गिरफ्तारी का कारण नहीं बताने पर रिमांड आदेश रद्द कर दिया है।
रामपुर के मंजीत सिंह की ओर से दायर रिट याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने यह आदेश पारित किया।
कोर्ट ने नौ अप्रैल 2025 को रिट याचिका स्वीकार करते हुए अपने निर्णय में रिमांड मजिस्ट्रेट द्वारा 26 दिसंबर 2024 को पारित आदेश और याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को रद्द कर दिया।
अदालत ने अपने फैसले में कहा- “याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया गया जोकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 47 के तहत अनिवार्य है और इस तरह के विवरणों की खामियों वाला गिरफ्तारी मेमो उपलब्ध करा दिया गया।”
उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी का आधार बताए जाने को संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत अनिवार्य बताया और कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति जिस भाषा को समझता हो, उसी भाषा में उसे बुनियादी तथ्य़ों के साथ गिरफ्तारी का कारण बताना होगा।
इस बारे में अदालत का यह भी कहना था कि जब गिरफ्तार व्यक्ति को रिमांड के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो यह पता लगाना कि अनुच्छेद 22(1) का अनुपालन किया गया है या नहीं, मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी है।
आगे अदालत ने यह भी कहा कि जब इस अनुच्छेद का उल्लंघन साबित हो जाए तो यह अदालत का दायित्व है कि वह तत्काल आरोपी को रिहा करने का आदेश जारी किया जाए। अदालत ने इसे ज़मानत का आधार बतया।
दलील में याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि इस याचिका में प्राथमिकी में लगाए गए आरोप क्या हैं? यह मुख्य मुद्दा नहीं, बल्कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया में अवैधता और रिमांड कार्यवाही के दौरान प्रक्रियागत खामियों को वकील ने मुख्य मुद्दा बताया।
गिरफ्तारी के समय याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी का कारण और आधार न बताए जाने को उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत अनिवार्य बताया।
बताते चलें कि रामपुर के थाना मलिक में याचिकाकर्ता के खिलाफ 15 फरवरी 2024 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 467, 468, 469, 406, 504 और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। मामले में गिरफ्तारी के फ़ौरन बाद 26 दिसंबर 2024 को उसे रिमांड पर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। इस दौरान याचिकाकर्ता को अदालत की हिरासत में भेज दिया गया था।