नई दिल्ली। नोटबंदी के कारण ट्रांसपोर्टरों की परेशानियों को देखते हुए उद्योग संगठन एसोचैम ने सरकार से ट्रक ऑपरेटरों की नगद निकासी की सीमा बढ़ाने की अपील की है, ताकि यात्रा के दौरान ड्राइवरों तथा क्लीनरों को पैसे की किल्लतों का सामना न करना पड़े। एसोचैम ने कहा कि वह कालेधन के खिलाफ जारी अभियान में सरकार का समर्थन करता है, लेकिन पैसे की किल्लत से जूझ रहे ट्रांसपोर्टरों की दिक्कतों को देखते हुए उनके लिए नगद निकासी की सीमा बढ़ाए जाने की भी वकालत करता है। transporters
विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए उद्योग संगठन ने कहा कि माल ढुलाई के दौरान ट्रक ड्राइवर को आम तौर पर आठ से दस दिन की यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा का करीब 10 प्रतिशत खर्च ट्रक ड्राइवर और उनके सहयोगी जैसे क्लीनर की जरूरतों पर किया जाता है। ये पूरा खर्च नगद में होता है और 500 तथा 1000 रुपए के पुराने नोट बंद हो जाने से ट्रक ऑपरेटर को कामकाज में बाधा में हो रही है।
पूरी एक ट्रिप के दौरान होने वाले कुल खर्च का 52 से 66 प्रतिशत ईंधन और 25 से 40 प्रतिशत तक टोल टैक्स, चुंगी और चेक नाके से जल्द निकलने में व्यय किया जाता है। आमतौर पर ये पूरी राशि भी नगदी में ही दी जाती है और ट्रक ड्राइवर एक तरह से कैशियर का काम भी कर रहा होता है। नोटबंदी से परिवहन उद्योग को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
एसोचैम ने सरकार से आग्रह किया है कि वह हर सप्ताह चालू खाते से निकाले जानी वाली 50,000 रुपए की तय नगद निकासी सीमा को बढ़ाकर कम से कम चार से पांच लाख रुपए कर दे। संगठन ने साथ ट्रांसपोर्ट उद्योग की अन्य समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा है कि देश के लगभग 75 फीसदी ट्रक ऑपरेटरों के पास पांच से कम ट्रक होते हैं और यह क्षेत्र मूल रुप से असंगठित है और चेक नाके की समस्या से जूझ रहे हैं। फिलहाल राष्ट्रीय राजमार्गों पर 177 अंतरर्राज्यीय चेक नाके और 268 टोल नाके हैं । संगठन के अनुसार अंतरराज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र को सुगम बनाने के लिए सरकार को ऐसे प्वाइंट या ग्रीन चैनल बनाने चाहिए कि सीलबंद ट्रक आसानी से आ जा सकें।