पिछले सप्ताह संसद में पारित किए गए तीन नए आपराधिक न्याय विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है।
कानूनों के अंतर्गत जुर्माना लगाने के साथ ही किसी को घोषित अपराधी ठहराने की मजिस्ट्रेट की शक्तियां बढ़ा दी गयी हैं।
ये तीन नए कानून – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य कानून, अब औपनिवेशिक काल के तीन कानूनों भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीनों विधेयकों पर होने वाली चर्चा का संसद में जवाब देते समय इन विधेयकों को पिछले कानूनों की तरह दंड देने के बजाए न्याय मुहैया कराने वाला बताया था।
गृह मंत्री के मुताबिक़, इन कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों और उनकी सजा को परिभाषित करके देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव लाना है।
#CriminalLawBills: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद से पिछले हफ्ते पारित किए गए तीन नए आपराधिक न्याय विधेयकों को सोमवार को मंजूरी दे दी।
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इन बदलाव के साथ आतंकवाद की परिभाषा को स्पष्ट किया गया है। राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त कर दिया गया है तथा राज्य के खिलाफ अपराध शीर्षक से एक नया खंड सम्मिलित किया गया है।
इससे पहले इन विधेयकों को अगस्त में संसद के मानसून सत्र में प्रस्तुत किया गया था। अमित शाह के मुताबिक़ तीनों विधेयकों को व्यापक विचार-विमर्श के बाद बनाया गया है सदन में पेश किए जाने से पहले मसौदा विधेयक के प्रत्येक अल्पविराम और पूर्णविराम पर गौर किया है।
गृह मामलों पर दी गई स्थायी समिति द्वारा कई सिफारिशों के बाद सरकार ने विधेयकों को वापस लेने का फैसला किया और पिछले सप्ताह उनका नया संस्करण प्रस्तुत किया गया था। इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी मंजूरी दे दी है।
भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद शब्द को व्याख्या के साथ पेश किया गया है। गौरतलब है कि अभी तक भारतीय दंड संहिता में इसे परिभाषित नहीं किया गया था। अब नए कानूनों के अंतर्गत जुर्माना लगाने के साथ ही किसी को घोषित अपराधी ठहराने की मजिस्ट्रेट की शक्तियां बढ़ा दी गयी हैं।