यूरोप के 31 देशों के 100 से अधिक राजनैतिक विशेषज्ञों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस समय निरंकुश सत्ता का वर्चस्व बढ़ रहा है। गैर-परम्परागत प्रजातंत्र से विमुख लोग कट्टरपंथी विचारधारा का समर्थन कर रहे हैं। इसके लिए दुनिया के कुछ बड़े और वर्चस्व वाले देशों की मिसाल सामने हैं।
‘कैन डेमोक्रेसी डेलीवर’ शीर्षक से सामने आने वाली अमरीकी रिपोर्ट कई नए पहलुओं का खुलासा करती है।
अमरीका की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन द्वारा दुनिया के 30 देशों में किया गया व्यापक सर्वेक्षण बताता है कि सत्ता के तौर पर प्रजातंत्र लोकप्रिय तो है, पर असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं का कोई हल न निकाल पाने के कारण युवा वर्ग प्रजातंत्र से विमुख होता जा रहा है।
परिस्थितियों के हवाले से अमरीका की बात करें तो डोनाल्ड ट्रम्प की हुकूमत ने प्रजातंत्र को महज़ चार वर्षों के भीतर ही राष्ट्रवादी और लोकलुभावनवादी सत्ता में तब्दील कर दिया।
एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में #Democracy सिकुड़ रही है और गैर-परंपरागत और निरंकुश सत्ता का समर्थन और वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। प्रजातंत्र के मजबूत गढ़ रहे भारत में भी 2014 के बाद से हम एक निरंकुश शासन में हैं जो राजशाही जैसा है। https://t.co/nDcmS3oGwY
— Navjivan (@navjivanindia) October 15, 2023
2022 में यूरोप में होने वाले चुनाव में 32 प्रतिशत मत गैर-परम्परागत प्रजातंत्र की विचारधारा से प्रभावित दिखे। गौरतलब है कि 2000 के शरुआती दशक में यह संख्या 20 प्रतिशत से भी कम थी। वहीँ 1990 के दशक में ऐसे लोगों की गिनती महज 12 प्रतिशत हुआ करती थी।
जबकि अध्ययन से पता चलता है कि वर्तमान में यूरोप में एक-तिहाई आबादी परम्परागत प्रजातंत्र वाले दलों या उम्मीदवारों के बजाए कट्टर दक्षिणपंथी या फिर कट्टर वामपंथी दलों अथवा उन दलों का समर्थन कर रही है जो लोकलुभावनवादी पद्धति पर काम कर रहे हैं।
प्रजातांत्रिक भारत में भी 2014 के बाद से परिस्थितियां और विचारधारा में बदलाव देखा गया है। यहाँ भी राष्ट्रवाद का ऐसा बोलबाला है कि प्रजातंत्र सिकुड़ता नज़र आ रहा है।
अफ्रीका और दक्षिण अमरीका के भी अधिकतर देश इस परंपरा पर आगे बढ़ने के संकेत दे रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड में भी परम्परागत प्रजातंत्र का अस्तित्व कमज़ोर होता नज़र आ रहा है।
अध्यन से ये खुलासा भी होता है कि 18 से 35 वर्ष के आयुवर्ग के 57 प्रतिशत प्रतिभागियों ने ही प्रजातंत्र का समर्थन किया जबकि 56 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में 71 प्रतिशत प्रतिभागियों ने प्रजातंत्र का समर्थन किया था।
इसका एक और रुख ये है कि 18 से 35 वर्ष के प्रतिभागियों में से 42 प्रतिशत ने सैन्य शासन का समर्थन किया जबकि दूसरे आयु वर्गों में से केवल 20 प्रतिशत इसके साथ खड़े नज़र आए।
35 प्रतिशत ऐसे युवा प्रतिभागी भी थे जिन्हें ऐसा निरंकुश शासक चाहिए जिसे न तो चुनाव की आवश्यकता पड़े और न ही यह संविधान से बंधा हो।
सर्वेक्षण सबसे प्रमुख वैश्विक समस्याओं के रूप में गरीबी और असमानता, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे सामने लाता है। इसमें सम्मिलित 23 प्रतिशत प्रतिभागी भ्रष्टाचार, 21 प्रतिशत गरीबी और असमानता, 7 प्रतिशत विस्थापन और प्रवास को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं।
सर्वेक्षण में 70 प्रतिशत लोगों ने जलवायु परिवर्तन को भविष्य का सबसे बड़ा खतरा बताया है। उनका मानना है कि इससे उनका रोजगार प्रभावित होगा।
सर्वेक्षण में 53 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि उनका देश गलत दिशा में जा रहा है, साथ ही एक-तिहाई प्रतिभागियों का मानना है कि सत्ता में बैठे लोग जनता उम्मीदों की उपेक्षा कर रहे हैं।
सत्ता की नजर में आबादी कितनी उपेक्षित है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 49 प्रतिशत प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि पिछले वर्ष कम से कम एक दिन ऐसा था, जब पैसे की कमी के कारण उन्हें भूखा रहना पड़ा। कुल 58 प्रतिशत प्रतिभागियों को लगता है कि राजनैतिक अस्थिरता से हिंसा के संभावना बढ़ जाती है। लगभग 42 प्रतिशत लोगों के अनुसार उनके देश में नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त क़ानून नहीं हैं।