आज यानी 11 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र संघ प्रत्येक वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस मनाता है। हर वर्ष इसकी एक थीम भी होती है। इस वर्ष की थीम लैंगिक समानता है। जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1989 में पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत हुई।
आंकड़ों के मुताबिक़ दुनिया की आबादी के 100 करोड़ होने में 1800 वर्ष लगे लेकिन उसके बाद जनसंख्या का विस्फोट ही होता जा रहा है। विश्व की जनसंख्या को 1 अरब तक पहुंचने में हजारों साल लगे थे लेकिन इसके बाद सिर्फ 200 साल में ही आबादी 7 गुना तक बढ़ गई।
11 जुलाई 1987 को दुनिया की जनसंख्या 5 अरब हो जाने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस पर चिंता प्रकट की। दो वर्ष बाद 11 जुलाई 1989 को संयुक्त राष्ट्र में बढ़ती आबादी को काबू करने और परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके साथ ही पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया।
बढ़ती आबादी हमेशा से चिंता का विषय रही है। ये ना केवल संसाधनों बल्कि दुनिया में उपलब्ध सुविधाओं की समस्या बनती है।
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— Dainik Jagran (@JagranNews) July 9, 2023
धर्म के आधार पर देखने से पता चलता है कि दुनियाभर में इस समय सबसे ज्यादा 31 फीसदी आबादी ईसाइयों की है। दूसरे नंबर पर 23 प्रतिशत मुस्लिम आबादी आती है।
आज ही के दिन एक वर्ष पहले दुनिया की आबादी 795 करोड़ थी जबकि आज ये आबादी 804 करोड़ हो चुकी है। बीते एक साल में दुनिया की आबादी करीब 9.5 करोड़ बढ़ी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ वर्ल्ड मीटर कैलकुलेटर की माने तो हर पल प्रत्येक मिनट 246 नवजात शिशु दुनिया में जन्म ले रहे हैं।
चिंता का विषय ये है कि दुनियाभर में पैदाइश का आंकड़ा जिस अनुपात में बढ़ रहा है, उस अनुपात में चिकित्सा सुविधा और जीवनशैली बेहतर होने से मृत्यु का आंकड़ा कम हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में इस दिन को जनसंख्या दिवस मनाने के लिए प्रस्ताव पास किया गया। विश्व जनसंख्या दिवस पर जागरुकता फैलाने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।