हिमालय में ग्लेशियर का सफेद रंग अब सफ़ेद नहीं रहा। इसमें नज़र आने वाले काले धब्बे इस इलाक़े की बिगड़ती सेहत की रिपोर्ट बयान कर रहे हैं।
ग्लेशियर का रंग बदलने के लिए हवा के साथ पहुँचने वाला ब्लैक कार्बन ज़िम्मेदार है। यह ब्लैक कार्बन क्षेत्र की आबो हवा को भी गर्म कर रहा है। इसके नतीजे में ग्लेशियर का तापमान बढ़ने से इसका पिघलना भी खतरे की घंटी है। ऐसे में जंगलों की आग पर काबू पाना भी बेहद जरूरी है।
जंगलों में लगने वाली आग से भारी मात्रा में ब्लैक कार्बन उत्सर्जित होता है। वैसे तो आग लगने की घटनाएं मध्य हिमालय में होती है और उच्च हिमालय के ग्लेशियर इससे काफी दूरहैं मगर यह ब्लैक कार्बन हवा के साथ वातावरण में फैलकर उच्च हिमालय के ग्लेशियर तक पहुंच बनता है। और इस प्रकार ब्लैक कार्बन ग्लेशियर पर फैलते हुए इसकी सतह से चिपक जाता है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, उत्तराखंड में हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल आग से प्रभावित हो रहे हैं। जंगलों की यह आग कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देती है जो सीधा पर्यावरण को प्रभावित करता है।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा साल 2024 में किए गए एक शोध से खुलासा हुआ है कि इस क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान मौजूदगी 17 गुना बढ़ी है। आंकड़ों से पता चला है कि करीब 17533 नैनोग्राम प्रति मीटर क्यूब ब्लैक कार्बन की मौजूदगी रही है।
शोध से यह भी पता चला कि वायुमंडल में जंगल की आग से कार्बन पार्टिकल वायुमंडल में 82% थे। वायुमंडल में कार्बन की उपस्थिति खास तौर पर उन इलाकों में बेहद ज्यादा थी जो जंगलों की आग के आसपास के क्षेत्र थे।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक उत्तराखंड में हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल प्रभावित हो रहे हैं। आंकड़ों पर नज़र डालें तो राज्य में साल 2021 में जहां 3943.88 हेक्टेयर जंगल जले, साल 2022 में 3425 हेक्टेयर जंगल आग से प्रभावित हुए, जबकि साल 2023 में 934 हेक्टेयर प्रभावित होने की खबर है। साल 2024 में भी जले जंगल का क्षेत्र 1200 हेक्टेयर से ज्यादा था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ उत्तराखंड वन विभाग सहित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जंगलों की आग से उत्सर्जित ब्लैक कार्बन की सही जानकारी या शोध उपलब्ध नहीं है। हालाँकि इन आंकड़ों को एकत्र करना एक बड़ी मुहिम है। ऐसे में पर्यावरण पर होने वाले इसके असर को लेकर पर्याप्त जानकारी सामने नहीं आ सकी है।