बीते दिनों बदलते हालात ने भारत सरकार के सामने तेल से लेकर खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें बड़ी चुनौती पेश कर रही हैं। इस समय सरकार को कई मोर्चों पर महंगाई की चुनौती मिल रही है। भारत के कृषि उत्पादन का अधिकांश हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चला जाता है। ऐसे में घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों की कीमतों में व्यापक स्तर पर बढ़ोतरी हो सकती है।
आर्थिक सर्वे में इस साल कच्चे तेल की कीमतें 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान जताया गया था। लेकिन सात मार्च को कच्चे तेल की कीमत 139 डॉलर के पार पहुंच गईं। हालांकि, देर रात को यह 123 डॉलर प्रति बैरल तक आ गईं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बीते चार नवंबर से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
विशेषज्ञों के अनुसार इस समय क्रूड की मौजूदा कीमतों के अनुसार पेट्रोल-डीजल की कीमतें काफी कम हैं। ऐसे में सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी का फैसला ले सकती है। ऐसे में महंगाई और मुद्रास्फीति दोनों में बढ़ोतरी होगी।
रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से हाल में थोक दरों में बढ़ोतरी हुई है। जब आरबीआई महंगाई की चुनौती से निपटने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा तो इसे वास्तविक ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी। इसका असर यह होगा कि थोक महंगाई में वृद्धि होगी।
कच्चे तेल की कीमतों की बढ़ोतरी का असर अन्य प्रमुख कमोडिटी पर भी पड़ रहा है। सात मार्च को शाम पांच बजे के करीब ब्लूमबर्ग कमोडिटी इंडेक्स (बीसीओएम) 132.37 अंक पर था। यह सात जुलाई 2014 के बाद का उच्च स्तर है। 24 फरवरी के बाद से इसमें 17 अंक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसी दिन रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई शुरू की थी। जानकारों के मुताबिक़ कमोडिटी की कीमतों में आई इस तेजी पर आसानी से काबू नहीं पाया जा सकता है।
रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से हाल में थोक दरों में बढ़ोतरी हुई है। जब आरबीआई महंगाई की चुनौती से निपटने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा तो इसे वास्तविक ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी। इसका असर यह होगा कि थोक महंगाई में वृद्धि होगी। थोक महंगाई में वृद्धि से निवेश प्रभावित हो सकता है। निवेश प्रभावित होता है तो पूंजी लागत भी बढ़ेगी। बीते 10 महीनों से देश में थोक महंगाई दर दो अंकों में बढ़ रही हैं। जबकि बीते दो महीनों से इसमें थोड़ी नरमी रही है।
यूक्रेन और रूस संघर्ष के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतें ऊंची हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र का खाद्य कीमत इंडेक्स सर्वकालिक उच्च स्तर 140.7 प्रतिशत पर पहुंच गया है। भारत के कृषि उत्पादन का अधिकांश हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चला जाता है। ऐसे में घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों की कीमतों में व्यापक स्तर पर बढ़ोतरी हो सकती है। नतीजे में अनाज की कीमतों में लगातार वृद्धि खाद्य महंगाई के लिए बुरी खबर है। कीमतों में लगातार वृद्धि के कारण सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने पर मजबूर होती है।