नई दिल्ली : राष्ट्रगान के मामले पर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सराकर आमने-सामने हैं। जहां सरकार चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने को लेकर और कड़ा ऑर्डर पास करे वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (14 फरवरी) को सुनवाई के वक्त साफ कर दिया कि उनकी तरफ से ना तो मोरल पुलिसिंग की जाएगी और ना ही खड़े होने के लिए कोई अतिरिक्त दबाव बनाया जाएगा। Supreme court
दरअसल, केंद्र सरकार की तरफ से आए अटोर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की थी कि वह तीस साल पुराने एक जजमेंट को भी देखें जिसमें Jehowah’s Witnesses (ईसाई धर्म) के एक परिवार को राष्ट्रगान ना गाने की छूट मिली हुई है।
मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस चीज को लेकर भी बहस होनी चाहिए कि स्कूल से ही बच्चे को राष्ट्रगान का आदर करना क्यों ना सिखाया जाए।
मुकुल ने आगे कहा कि वक्त आ गया है कि 1986 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर फिर से नजर डाली जाए और उसपर विचार किया जाए।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए साफ किया कि राष्ट्रगान को लेकर उसकी तरफ से फिलहाल कोई सख्त ऑर्डर जारी नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसकी अगुवाई जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे ।
उन्होंने कहा कि कोर्ट के ऑर्डर को लागू करने के लिए आम लोग किसी तरह की मोरल पुलिसिंग नहीं कर सकते। यह भी साफ किया गया कि फिल्म या फिर डॉक्यूमेंट्री के दौरान अगर राष्ट्रगान बजता है तो उसपर खड़े होने की जरूरत नहीं है।
यानी फिल्म की शुरुआत में तो खड़ा होना होगा लेकिन अगर राष्ट्रगान किसी फिल्म का हिस्सा है तो उसपर खड़ा होने अपने विवेक पर है। हाल में आई दंगल फिल्म में राष्ट्रगान था। ऐसे में लोग सोच में पड़ गए थे कि क्या उन्हें दो बार खड़ा होना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर को आदेश दिया था कि सभी सिनेमा घरों में फिल्म के शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलवाना होगा। इसके अलावा राष्ट्रगान के वक्त स्क्रीन पर तिरंगा भी दिखाना की जरूरी किया गया था। राष्ट्रगान के सम्मान में सभी दर्शकों को खड़ा होना होगा यह भी कहा गया था।