नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों में ‘इस्लामिक विंडो’ खोले जाने का प्रस्ताव दिया है। ताकि देश में शरिया के अनुरुप या ब्याज मुक्त बैंकिंग की ‘सतत’ शुरुआत की जा सके। केंद्र और आरबीआई लंबे समय से इस्लामिक बैंकिंग की संभावनाएं तलाश रहे थे। इससे धार्मिक वजहों से बैंकिंग सेवाओं से महरूम हिस्सों को जोड़ा जा सकेगा। आरबीआई ने वित्त मंत्रालय को एक पत्र में यह प्रस्ताव और इसके फायदे गिनाए हैं, जो कि एक आरटीआई के जवाब में पीटीआई को मिला है। पत्र में आरबीआई की तरफ से लिखा गया है, ”हमारी राय में, इस्लामिक वित्तीय जटिलता और मामले की चुनौतियों तथा इस बात के आधार पर कि भारतीय बैंकों को इस क्षेत्र में कोई पूर्व अनुभव नहीं हैं, धीरे धीरे इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत की जा सकती है। sharia banking
शुरुआत में, परंपरागत बैंकिंग उत्पादों के जैसे कुछ आसान उत्पाद बैंकों की इस्लामिक खिलाड़ी के जरिए पेश किए जाएंगे। समय के साथ मिले अनुभवों के अाधार पर पूर्ण रूप से इस्लामिक बैंकिंग केा लाभ हानि वाले जटिल उत्पादों को लॉन्च किया जा सकता। इस्लामिक या शरिया बैंकिंग ऐसा वित्तीय सिस्टम है जिसमें ब्याज वसूलने का सिद्धांत नहीं है, जो कि इस्लाम में प्रतिबंधित है।
पत्र में कहा गया है, ”हमारी समझ से, ब्याज मुक्त बैंकिंग के वित्तीय समावेश के लिए उत्पाद को शरिया के अनुरुप बनाना होगा। ब्याज मुक्त बैंकिंग अन्य फंड्स से न मिल जाए, इसलिए हमें इस बैंकिंग के लिए एक अलग खिड़की खोलनी होगी।” केंद्रीय बैंक यह प्रस्ताव इंटर डिपार्टमेंटल ग्रुप की सिफारिश के आधार पर भारत में इस्लामिक बैंकिंग की श्ुारुआत जांचने के लिए कानूनी, तकनीकी और नियामक मुद्दों की जांच पर आधारित है। आरबीआई ने इस संबंध में एक टेक्निकल एनालिसिस रिपोर्ट तैयार की है जो वित्त मंत्रालय को भेज दी गई है।
आरबीआई ने पत्र में कहा है, ”अगर सुझाव के अनुसार, भारत में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने का फैसला होता है, तो बैंकों द्वारा ऐसे उत्पाद पेश करने के लिए नियामक और कार्यप्रभावी तंत्र बनाने के लिए आरबीआई को और कार्य करना होगा।”
शरिया बैंक के प्लान का कुछ राजनैतिक व गैर राजनैतिक समूहों ने विरोध किया था। 2008 के अंत में, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की अगुवाई में बनी वित्तीय सुधारों की कमेटी ने कहा था कि देश में ब्याज मुक्त बैंकिंग के मुद्दे पर गंभीरता से विचार की जरूरत है। sharia banking