लखनऊ। मध्यप्रदेश के पूर्व गवर्नर और यूपी के पूर्व सीएम रामनरेश यादव का मंगलवार को लखनऊ में निधन हो गया। वे 89 साल के थे। उनका लखनऊ के पीजीआई में इलाज चल रहा था। उनके फेफड़े में इन्फेक्शन था। उनके निधन की खबर के बाद मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी दुख जताया। पूर्व सीएम का शव जब घर पहुंचा तो वहां कोहराम मच गया। परिवार को सांत्वना देने के लिए गवर्नर राम नाईक, सीएम अखिलेश यादव भी पहुंचे। ramnaresh yadav
पीजीआई के डायरेक्टर डॉ. राकेश कपूर ने बताया कि रामनरेश दो महीने से ज्यादा समय से पीजीआई में एडमिट थे। उनके फेफड़े में इन्फेक्शन था, जिसकी वजह से वे वेंटिलेटर पर थे। एडमिट होने के एक हफ्ते बाद ही वे वेंटिलेटर पर आ गए थे। इसके बाद उन्हें सास से रिलेटेड बीमारियां बढ़ती चली गईं।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के गवर्नर रहते रामनरेश यादव का नाम व्यापमं स्कैम में जुड़ा था। इसके बाद उन्हें गवर्नर पद से हटाने की मांग उठी थी, हालांकि, रामनरेश का कहना था कि जांच पूरी होने तक उन्हें दोषी करार नहीं दिया जा सकता। लिहाजा वह अपने पद पर बने रहेंगे।
जुलाई 1928 में यूपी के आजमगढ़ में रामनरेश का जन्म हुआ था। राम नरेश पहली बार चौधरी चरण सिंह की मदद से 1977 में जनता पार्टी के सीएम बने थे। वे किसानों की आवाज उठाने के लिए जाने जाते थे। उनको राजनीतिक माहौल घर से ही मिला था, क्योंकि उनके पिता गया प्रसाद महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे। उन्होंने बीएचयू से बीए, एमए और एलएलबी की पढ़ाई की और यहीं छात्र संघ की राजनीति से भी जुड़े रहे।
इसके बाद कुछ वक्त के लिए वे जौनपुर के पट्टी स्थित नरेंद्रपुर इंटर कॉलेज में प्रवक्ता भी रहे। 1953 में उन्होंने आजमगढ़ में वकालत की शुरुआत की। रामनरेश ने समाजवादी विचारधारा के तहत विशेष रूप से जाति तोड़ो, विशेष अवसर के सिद्धांत, बढ़े नहर रेट, किसानों की लगान माफी, समान शिक्षा, आमदनी और खर्च की सीमा बांधने, वास्तविक रूप से जमीन जोतने वालों को उनका अधिकार दिलाने, अंग्रेजी हटाओ आदि आंदोलनों को लेकर कई बार गिरफ्तारियां दीं। इमरजेंसी के दौरान वे मीसा और डीआईआर के अधीन जून 1975 से फरवरी 1977 तक आजमगढ़ जेल और केंद्रीय कारागार नैनी, इलाहाबाद में बंद रहे। रामनरेश 1988 में राज्यसभा सदस्य बने और 12 अप्रैल 1989 को राज्यसभा के अंदर डिप्टी लीडरशिप, पार्टी के महामंत्री और अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ली।