चक्रवाती तूफान अम्फान की तबाही से अभी पूर्वी तट उबरा भी नहीं है कि पश्चिमी तट पर निसर्ग दस्तक दे रहा है. पश्चिम में आम तौर पर चक्रवाती नहीं आते. एक पखवाड़े के भीतर भारत में दूसरे ताकतवर चक्रवाती तूफान के क्या मायने हैं?
अम्फान एक सुपर साइक्लोन के रूप में समंदर में उठा था. पश्चिम-बंगाल और बांग्लादेश तट पर पहुंचते पहुंचते इसकी ताकत थोड़ा कम जरूर हो गई थी लेकिन फिर भी इसने दोनों देशों में कुल 100 से अधिक लोगों की जान ली और करोड़ों रुपये का नुकसान किया. अरब सागर से उठने वाला निसर्ग बुधवार दोपहर तक महाराष्ट्र के अलीबाग में तट से टकराएगा.
भारतीय मौसम विभाग में चक्रवाती तूफानों की विशेषज्ञ और प्रभारी सुनीता देवी ने डीडब्ल्यू से कहा, “इस चक्रवात के सुपर साइक्लोन बनने की संभावना नहीं है. हमारे पूर्वानुमान के हिसाब से इसकी तीव्रता सीवियर साइक्लोनिक स्टोर्म की होगी. अभी यह इससे भी निचले दर्जे की तीव्रता पर है जिसे साइक्लोनिक स्टोर्म कहा जाता है. यह (तीव्रता के मामले में) एक पायदान और ऊपर जाएगा और फिर तट से टकरा जाएगा.”
अगर किसी तूफान की रफ्तार 222 किलोमीटर (120 नोट्स) से अधिक हो तो तभी वह सुपर साइक्लोन कहलाता है. निसर्ग मंगलवार सुबह तक 70 किलोमीटर की स्पीड पार कर चुका था और मौसम विज्ञानी कहते हैं कि यह तूफान 120 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक रफ्तार हासिल करने से पहले ही तट से टकरा जाएगा.
पश्चिमी तट पर बढ़ रहा है खतरा
चक्रवाती तूफान अक्सर भारत पूर्वी तट पर ही टकराते हैं. फायलिन (2013), हुदहुद (2014, वर्धा (2016) के अलावा गज और तितली (2018) पूर्वी तट पर ही आए. इसी तरह 2019 में फानी और इस साल 2020 में अम्फान पूर्वी पर ही टकराए हैं. जानकार कहते हैं कि पश्चिमी हिस्से में स्थित अरब महासागर में तूफान तो उठते हैं लेकिन वह भारत की तट रेखा से नहीं टकराते इसलिए उसका कोई बड़ा नुकसान नहीं होता.
“पिछले 2 सालों से हम विशेष रूप से यह बात नोट कर रहे हैं कि अरब सागर में हलचल बढ़ रही है जिसका असर पश्चिमी तट पर पड़ रहा है. लेकिन अगर हम लैंडफॉल को देखें तो यहां समुद्र तट से तूफान नहीं टकराते. अगर पिछले साल आए चक्रवात वायु को देखें तो वह तट से दूर चला गया था. उसके अलावा एक और बहुत शक्तिशाली चक्रवात (अरब सागर में) उठा और वह भी समुद्र में दूसरी दिशा में चला गया. हमने देखा है कि ये तूफान अब तक भारत की ओर आने की बजाय ओमान और यमन जैसे देशों की ओर मुड़ जाते हैं.” सुनीता देवी कहती है.
भारत के लिहाज से यह काफी खुशकिस्मती वाली बात है क्योंकि पश्चिमी तट पर आबादी काफी घनी है और गरीब बस्तियां समंदर किनारे निचले इलाकों में बसी हैं. साल 2017 में ओखी तूफान केरल में समुद्र के भीतर आया और तब भी उसने 300 से अधिक लोगों की जान ली. समुद्री इकोलॉजी पर शोध कर रहे कार्यकर्ता एजे विजयन कहते हैं, “केरल का समुद्र तट अब काफी अशांत हो गया है. यहां पहले इस तरह की हलचल नहीं दिखती थी. यहां ओखी तूफान समुद्र के भीतर आया था तब भी सैकड़ों लोग उसमें मरे. सोचिए अगर केरल के तट पर वह तूफान टकराता तो क्या होता. मुझे डर है कि हम पूर्वी तट के मुकाबले अधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं क्योंकि यहां लोग तट पर ही रहते हैं.”