बांदा : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला तेज करते हुए ‘बनारस का बेटा’ वाली टिप्पणी के लिए उन्हें आड़े हाथों लिया। Pm
राहुल ने कहा कि रिश्ता जताने से नहीं बल्कि निभाने से पूरा होता है।
राहुल ने यहां एक चुनावी जनसभा में कहा, ‘मोदी जी ने वर्ष 2014 में कहा था कि गंगा मां ने अपने बेटे को बनारस बुलाया है।
वह कहते हैं कि बनारस मेरी मां है और मैं बनारस का बेटा हूं…मोदी जी रिश्ता जताने से नहीं, निभाने से पूरा होता है।’
उन्होंने कहा, ‘मोदी जी उत्तर प्रदेश की जनता से रिश्ता बनाया है तो निभाना पड़ेगा।’
राहुल ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रतिकूल नतीजों की आशंका के चलते प्रधानमंत्री मोदी ‘नर्वस’ हो गये हैं। उन्होंने कहा, ‘पहले मोदी जी अच्छे मूड में होते थे लेकिन जिस दिन कांग्रेस और सपा का गठजोड़ हुआ, उनके चेहरे से हंसी गायब हो गई।’
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संप्रग सरकार द्वारा किसानों का सात हजार करोड़ रूपये का कर्ज माफ करने का उल्लेख करते हुए राहुल ने कहा, ‘मोदी अगर किसानों का कर्ज माफ करना चाहते हैं तो कैबिनेट की बैठक बुलायें और पांच मिनट मे कर्ज माफ करें… पर आपकी (मोदी) नीयत साफ नहीं है।’
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने बसपा को ‘बहनजी सम्पत्ति पार्टी’ करार देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पलटवार करते हुए उन्हें ‘नेगेटिव दलित मैन’ बताया और कहा कि मोदी को दलितों द्वारा थोड़े-थोड़े आर्थिक सहयोग से अपने आंदोलन को बढ़ाया जाना अखर रहा है।
मायावती ने सुलतानपुर में आयोजित चुनावी सभा में कहा ‘प्रधानमंत्री मोदी ने उरई में एक रैली में बसपा को ‘बहनजी सम्पत्ति पार्टी’ बताया है।
मोदी पूरे प्रदेश में बसपा के बढ़ते जनाधार को देखकर इतने दुखी हैं कि वह उसकी परिभाषा को गलत तरीके से बताकर जनता को गुमराह बता रहे हैं। मोदी जुमलेबाजी करने में माहिर हैं। उन्हें जवाब जैसे को तैसा मिलेगा तो जुमलेबाजी करना भूल जाएंगे।’
उन्होंने कहा, ‘मैं जुमलेबाजी करने में मोदी से दो कदम आगे हूं। देश के प्रधानमंत्री का पूरा नाम नरें्रद दामोदरदास मोदी है। नरेंद्र का मतलब होता है नेगेटिव, दामोदरदास का मतलब होता है दलित और मोदी का मतलब होता है मैन।
ही इज नेगेटिव दलित मैन।’ उन्होंने कहा, ‘अपने देश का जो प्रधानमंत्री है वह दलित विरोधी आदमी है। इसके नाम से ही जाहिर हो जाता है।
इस आदमी को यह अच्छा नहीं लगता है कि पूरे देश के जो दलित हैं, वे अपनी कमाई में से थोड़ा-थोड़ा धन देकर अपने आंदोलन को आगे बढ़ाएं।’