लखनऊ। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को यूपी का सीएम कंडीडेट घोषित कर प्रदेश की सियासत गरमा दी है। इससे पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर राज बब्बर की ताजपोशी की गयी। कांग्रेस को सियासत के मैदान में यूपी की हैसियत का बख़ूबी अंदाज़ा है। यही वजह है कि दो दशकों से यूपी में हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस इस बार फुल स्ट्रोक से खेलना चाहती है।
उत्तरप्रदेश पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है। सभी पार्टियों ने अपने अपने मोहरे और चालें चलनी शुरू कर दी हैं। कांग्रेस ने पहले गुलाम नबी आज़ाद को यूपी का प्रभारी बनाया, फिर राज बब्बर की ताजपोशी की। शीला दीक्षित को यूपी में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर पेश किया। शीला पंजाब की रहने वाली हैं और यूपी के उन्नाव में उनकी ससुराल है। यूपी से सासंद भी रह चुकी हैं। ताबड़तोड़ किये गये फैसले और फेरबदल से साफ़ ज़ाहिर होता है कि कांग्रेस यूपी में खड़ा होने के लिये छटपटा रही है। यूपी की सियासी बिसात पर एक के बाद एक चली गयी इन चालों ने बीजेपी, सपा और बीएसपी तीनों को ही चौंकाया ज़रूर है, लेकिन फिलहाल ये पार्टियां कांग्रेस की इन चालों पर अभी सिर्फ़ बारीक निगाह रखे हैं।
इससे पहले यूपी में प्रियंका को जिम्मेदारी देकर उनका सियासी सफ़र शुरू किये जाने का शिगूफ़ा भी उठा। इस सबके बीच सबसे अहम किरदार पर्दे के पीछे से नज़र आ रहा है। वो किरदार है पीके का, जिन्हें कांग्रेस ने यूपी में अपने मिशन 2017 की जिम्मेदारी सौंपी है। पीके को ना सिर्फ़ हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस को सूबे में दोबारा जीवित करना है बल्कि चुनाव के नतीजों में आंकड़े भी बढ़ाने हैं। ऐसे में गुलाम नबी आज़ाद, शीला दीक्षित और राज बब्बर को सियासी बिसात पर चले गये मोहरों के तौर पर देखा जा रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि ये सब पीके की रणनीति का एक हिस्सा है।
कांग्रेस के सभी बड़े चेहरे यूपी की सियासत में कितना कारगर साबित होंगे ये आने वाला वक्त ही बतायेगा। सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस गुटबाजी के चलते कांग्रेस की यूपी में ये दशा हुयी है उसे कैसे रोका जायेगा। पिछले 27 साल से यूपी कांग्रेस का यह हाल नेताओं की आपसी खींचतान की वजह से ही हुआ है। निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री को को-ऑर्डिनेशन कमेटी में रखा गया है। सियासी गलियारों में ये चर्चा आम है कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सलमान खुर्शीद और प्रमोद तिवारी से उनके संबंध कभी बेहतर नहीं रहे। रीता बहुगुणा जोशी को हटाकर निर्मल खत्री को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। इन दोनों के भी संबंधों में खटास की बातें सामने आती रही हैं। प्रमोद तिवारी और रीता जोशी भी आपस में एक-दूसरे के विरोधी माने जाते हैं। यूपी में विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर को प्रमोद तिवारी से अलग खेमे का माना जाता है। सवाल ये है कि पीके ने यूपी की बिसात पर गुलाम, शीला और बब्बर दांव तो चल दिया, लेकिन यहां के बड़े कांग्रेसियों की गुटबाजी को वो कैसे खत्म कर पायेंगे।