स्विस शोध समूह न्यूरोरेस्टोर के शोधकर्ताओं की एक टीम ने न्यूरॉन्स की पहचान की है जो स्ट्रोक पीड़ितों की चलने की क्षमता को बहाल करने में मदद कर सकते हैं।
बहुत से लोगों ने सोचा था कि विकलांग लोगों के लिए फिर से चलना असंभव है, लेकिन वैज्ञानिकों ने आखिरकार उन कोशिकाओं की पहचान कर ली है जो चलने की क्षमता को बहाल करती हैं।
न्यूरॉन फंक्शन और ऑर्गन फंक्शन को बहाल करने में उत्तेजना की प्रभावशीलता का अध्ययन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने पहले चूहों पर प्रयोग किया। इस प्रयोग से वैज्ञानिकों को यह जानने में मदद मिली कि लकवे के इलाज के लिए किन नसों को उत्तेजित करने की जरूरत है।
चूहों पर एक अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने रीढ़ की पुरानी चोट वाले 9 लोगों का चयन किया और चूहों पर भी यही प्रक्रिया लागू की। इस प्रक्रिया की सफलता लकवाग्रस्त लोगों के फिर से चलने की क्षमता में काफी आश्चर्यजनक है।
न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने अब उन तंत्रिका कोशिकाओं की पहचान की है जो इलाज के बाद लकवाग्रस्त लोगों में चलने की क्षमता को बहाल कर सकती हैं।
गौरतलब बात ये है कि रीढ़ की हड्डी की चोट के बाद पैरों में पक्षाघात का एक मुख्य कारण यह है कि रीढ़ की हड्डी और पैरों के बीच के संकेत बाधित हो जाते हैं, जिसके बाद लोग चलने की क्षमता खो देते हैं।
जब मानव शरीर में गति की बात आती है तो रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाएं बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। हालांकि पिछले शोधों से पता चला था कि लकवाग्रस्त लोग इलाज के बाद फिर से चल सकते हैं, यह कैसे संभव होगा यह स्पष्ट नहीं था।
हाल ही में इस नए अध्ययन के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने अब उन तंत्रिका कोशिकाओं की पहचान की है जो इलाज के बाद लकवाग्रस्त लोगों में चलने की क्षमता को बहाल कर सकती हैं। शल्य चिकित्सा द्वारा प्रत्यारोपित न्यूरोट्रांसमीटर रीढ़ की हड्डी के हिस्से को उत्तेजित करता है।