सीपीजे यानी पत्रकारों की सुरक्षा समिति का कहना है कि पिछले वर्ष अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करते समय18 देशों में 124 पत्रकार मारे गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी के अनुसार, पत्रकार संगठन “कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स” की वार्षिक रिपोर्ट जारी हो गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में पत्रकारों की हत्या की संख्या किसी भी अन्य वर्ष की तुलना में अधिक थी, जब से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए समिति ने तीन दशक से अधिक समय पहले डेटा एकत्र करना शुरू किया था।
पिछले साल कम से कम 124 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए, जिनमें से लगभग दो-तिहाई इजरायल द्वारा मारे गए फिलिस्तीनी थे।
पत्रकार संगठन की यह रिपोर्ट यह खुलासा भी करती है कि इजरायल के गाजा युद्ध के कारण पत्रकार दशकों के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इज़रायली हमलों के दौरान 2024 में सबसे ज़्यादा पत्रकरों की मौत हुई है।
रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि पिछले वर्ष मारे गए 124 पत्रकारों में से 70 प्रतिशत की मौत इज़रायली आक्रमण में हुई। बताते चलें कि बीते वर्ष इजरायल ने गाजा युद्ध में सभी पत्रकारिता सिद्धांतों का उल्लंघन किया था।
पिछले पाँच वर्षों में वैश्विक स्तर पर संघर्षों की संख्या, चाहे वे राजनीतिक, आपराधिक या सैन्य प्रकृति के हों, दोगुनी हो गई है। यह सूडान, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे देशों में पत्रकारों की मौतों की उच्च संख्या में परिलक्षित होता है। लेकिन प्रेस पर संघर्ष का सबसे ज़्यादा असर इज़रायल-गाज़ा युद्ध में मारे गए पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की अभूतपूर्व संख्या में देखा जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर कुल 124 मौतें, 2007 में मारे गए 113 लोगों की रिकॉर्ड संख्या से ज़्यादा हैं, जब इराक युद्ध में पत्रकारों की लगभग आधी मौतें हुई थीं।
बताते चलें कि इस वर्ष के पहले महीने में छह पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की हत्या हो चुकी है। गौरतलब है कि सीपीजे अपने डेटाबेस में किसी पत्रकार की हत्या को तब दर्ज करता है, जब उसके पास यह मानने के लिए उचित आधार हो कि उनकी हत्या उनके काम के संबंध में की गई हो सकती है। या तो संघर्ष क्षेत्र में या किसी खतरनाक काम के दौरान दुर्घटनावश या फिर पत्रकारिता के कारण जानबूझकर मारे गए हों।