प्रदेश में कई दुर्लभ औषधीय पौधों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदेश जैव विविधता बोर्ड ने प्रदेश में कई दुर्लभ जंगली औषधीय पौधों की प्रजातियों को संकटग्रस्त घोषित किया है।
अमर उजाला की एक खबर के मुताबिक़, प्रदेश जैव विविधता बोर्ड ने प्रदेश में 57 जंगली औषधीय पौधों की प्रजातियों को संकटग्रस्त घोषित किया है। इसके चलते कई दुर्लभ पौधों की वह प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं जिनसे औषधि बनाई जाती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक़, पौधों पर संकट का कारण असंगठित और अंधाधुंध दोहन है। अकसर स्थानीय लोग अपनी आजीविका के लिए इन जंगलों पर निर्भर रहते हैं। यह लोग बिना किसी वैज्ञानिक मार्गदर्शन के पौधा उखाड़ लेते हैं जिसके नतीजे में अनजाने ही बड़ा भारी नुकसान कर गुज़रते हैं।
पर्यावरण चक्र में इस कारण होने वाले इस परिवर्तन को पिछले 100 साल में बढ़ने वाले एक डिग्री तापमान से भी जोड़ा जा सकता है, जो तापमान बढ़ने के कुछ कारकों में से एक है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है।
कुछ खास किस्म के पौधे हिमालयी क्षेत्रों तक सीमित हैं और इनका औषधीय महत्व बहुत अधिक है। हालाँकि, सरकार औषधीय पौधों के संरक्षण संबंधी कदम उठा रही है। राज्य वन विभाग की ओर से औषधीय पौधों के संरक्षण क्षेत्र की स्थापना की गई है। वर्तमान में प्रदेश में कुल 18 एमपीसीए स्थापित किए गए हैं।
मगर यह भी सच है कि केवल सरकारी प्रयासों से इन दुर्लभ प्रजातियों को बचाया नहीं जा सकता है। इसके लिए स्थानीय समुदायों को ट्रेनिंग देते हुए उनके पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक तकनीकों से जोड़ना बेहद ज़रूरी है।