नयी दिल्ली : दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा प्रशासनिक फैसलों में संविधान और प्रक्रिया संबंधी नियमों के उल्लंघन की बात शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में उजागर की है. Kejriwal
सितंबर 2016 में तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा केजरीवाल सरकार के फैसलों की समीक्षा के लिए गठित शुंगलू समिति ने सरकार के कुल 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों को खंगाला.
इनमें से 36 मामलों में फैसले लंबित होने के कारण इनकी फाइलें सरकार को लौटा दी गयी थीं.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू की अध्यक्षता वाली समिति ने केजरीवाल सरकार के फैसलों से जुडी 404 फाइलों की जांच कर इनमें संवैधानिक प्रावधानों के अलावा प्रशासनिक प्रक्रिया संबंधी नियमों की अनदेखी किये जाने का खुलासा किया है.
इसके लिये समिति ने सरकार के मुख्य सचिव, विधि एवं वित्त सचिव सहित अन्य अहम विभागीय सचिवों को तलब कर सरकार के इन फैसलों में संबद्ध अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों ने समिति को बताया कि उन्होंने इस बाबत सरकार को अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण के बारे में समय समय पर आगाह किया था. इसके लिए कानून के हवाले से दिल्ली में उपराज्यपाल के सक्षम प्राधिकारी होने की भी बात सरकार को बतायी.
इतना ही नहीं इसके गंभीर कानूनी परिणामों के प्रति भी सरकार को सहजभाव से आगाह किया. रिपोर्ट में सभी फाइलों के अवलोकन के आधार पर कहा गया है कि सरकार ने अधिकारियों के परामर्श को दरकिनार कर संवैधानिक प्रावधानों, सामान्य प्रशासन से जुड़े कानून और प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन किया है.
इसमें उपराज्यपाल से पूर्वानुमति लेने या फैसलों को लागू करने के बाद उपराज्यपाल की अनुमति लेने और सरकार द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसले करने जैसी अनियमिततायें शामिल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक इतना ही नहीं दूसरी बार सत्ता में आने के बाद आप सरकार ने संविधान और अन्य कानूनों में वर्णित दिल्ली सरकार की विधायी शक्तियों को लेकर भी बिल्कुल अलग नजरिया अपनाया था.
इसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 25 फरवरी 2015 के उस बयान का भी हवाला दिया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन से जुड़े मामलों की फाइलें ही उपराज्यपाल की अनुमति के लिये वाया मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी जायेंगी.
शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार द्वारा शासकीय अधिकारों के दुरपयोग के मामलों में अधिकारियों के तबादले, तैनाती और अपने करीबियों की तमाम पदों पर नियुक्ति करने का जिक्र किया है.
इसमें स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की बेटी को एक सरकारी अभियान की मिशन अफसर बनाने, सरकारी संपत्ति के आवंटन सहित अन्य मामले शामिल हैं.
इसमें कहा गया है कि तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली सरकार के क्षेत्राधिकार को लेकर महाधिवक्ता से परामर्श कर 15 अप्रैल 2015 को मुख्यमंत्री केजरीवाल को कानून के पालन की नसीहत दी थी.
इसके उलट 29 अप्रैल को मुख्यमंत्री के सचिव की ओर से सभी विभागों को निर्देश जारी कर कहा गया कि जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस से जुड़े मामलों को छोड़कर विधानसभा के विधायी क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी मामलों पर सरकार बेबाकी से फैसले कर सकेगी जबकि जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस से जुड़े मामलों में उपराज्यपाल की पूर्वानुमति से पहले संबद्ध फाइल को मुख्यमंत्री के मार्फत ही उपराज्यपाल के पास भेजा जाए. रिपोर्ट में आला अधिकारियों के तबादलों में भी उपराज्यपाल की अनदेखी की फेहरिस्त दी गयी है.