कन्नड़ लेखिका बानो मुश्ताक़ को इस बार का बुकर प्राइस मिला है। बानो की किताब ‘हार्ट लैंप’ का अंग्रेजी अनुवाद दीपा भष्ठी ने किया है। हार्ट लैंप कन्नड़ भाषा में लिखी पहली किताब है, जिसे बुकर प्राइज मिला है।
‘हार्ट लैंप’ बारह कहानियों का संग्रह है जिसमें दक्षिण भारत के मुस्लिम समुदाय के उस हिस्से का जीवन दर्शन है जो हर दिन के संघर्ष के सहारे अपनी ज़िंदगी की गाड़ी खींच रही हैं।
बानू मुश्ताक और दीपा भष्ठी ने मंगलवार को लंदन के टेट मॉडर्न में हुए कार्यक्रम में ये सम्मान प्राप्त किया।अवॉर्ड जीतने के बाद मुश्ताक ने कहा- ‘यह किताब का जन्म इस भरोसे से हुआ है कि कोई भी कहानी कभी छोटी नहीं होती। मानवीय अनुभव के ताने-बाने में हर धागा मायने रखता है।
आगे वह कहती हैं कि ऐसी दुनिया में जो अक्सर हमें बांटने करने की कोशिश करती है, साहित्य उन खोई हुई पवित्र जगहों में से एक है, जहां हम एक-दूसरे के ज़ेहन में रह सकते हैं, भले ही कुछ पृष्ठों के लिए ही क्यों न हो।’
पत्रकारिता और लेखन के अलावा बानो वकील और एक्टिविस्ट भी हैं। बानो मुश्ताक ने ‘लंकेश पत्रिका’ में रिपोर्टिंग से अपने करियर का आग़ाज़ किया था। याद दिला दें ये वही ‘लंकेश पत्रिका’ है जिसकी स्थापना गौरी लंकेश के पिता पी लंकेश ने की थी।
कट्टरपंथी मुसलमानों ने उनका सामाजिक बहिष्कार उस समय किया था जब उन्होंने मस्जिद में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश के लिए अभियान चलाया था।
कर्नाटक में हिजाब विवाद में भी उन्होंने अपना पक्ष रखा और कहा कि लड़कियों को हिजाब पहनकर स्कूल जाने का हक है और इसे नहीं छीना जाना चाहिए।
हार्ट लैंप दुनियाभर की छह किताबों में से बुकर प्राइज के लिए चुनी गई किताब है। साथ ही इसे अवॉर्ड पाने वाला पहला लघु कथा संग्रह भी कह सकते हैं। यही नहीं, दीपा भष्ठी इस किताब के लिए सम्मान पाने वाली पहली भारतीय अनुवादक हैं।
बानो की ये कहानिया साल 1990 से 2023 के बीच लिखी गई थीं। दीपा भष्ठी ने करीब 50 में से 12 कहानियों का चयन करते हुए इन्हे अनुवाद किया।
लंदन के टेट मॉडर्न में होने वाले समारोह में बानू मुश्ताक और दीपा भष्ठी को सम्मान के साथ 50,000 पाउंड की पुरस्कार राशि दी गई जो भारतीय मुद्रा में करीब 52.95 लाख रुपए है। यह राशि लेखक और अनुवादक के बीच बराबर बांटी जाती है।
हार्ट लैंप में दक्षिण भारतीय महिलाओं के जिस जीवन का चित्रण बानो मुश्ताक़ ने किया है उसमे पितृ सत्तात्मक समाज में रहते हुए महिलाओं की समस्याओं को बड़े ही मार्मिक रूप में दर्शाया गया है।
बताते चलें कि इससे पहले 2022 में भारत की गीतांजलि श्री को उनके उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड के लिए प्रतिष्ठित बुकर प्राइज दिया गया था। टॉम्ब ऑफ सैंड बुकर जीतने वाली हिंदी की पहली किताब थी। इसका अंग्रेजी अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है।
यह उपन्यास हिंदी में ‘रेत समाधि’ नाम से आया था। बानू मुश्ताक से पहले भारतीय मूल के 6 लेखक बुकर प्राइज जीत चुके हैं। इनमें वीएस नायपॉल, सलमान रुश्दी, अरुंधति रॉय, किरण देसाई, अरविंद अडिगा और गीतांजलि श्री शामिल हैं। अरुंधति रॉय बुकर प्राइज जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं।
बुकर प्राइज फॉर फिक्शन की स्थापना 1969 में इंग्लैंड की बुकर मैकोनल कंपनी ने की थी। इसमें फिक्शन लेखक को पुरस्कार राशि के रूपमें 50,000 पाउंड दिए जाते हैं, जिसे लेखक और ट्रांसलेटर के बीच बराबर-बराबर बांटा जाता है।