नई दिल्ली। लगता है कि पांच सौ और एक हजार रुपये के नोट बंद कर मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को कैशलेस करने का जोखिम उठा रही है। भारत के लिए यह राह उतना आसान नहीं है। लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था पर इसका असर उतना ही व्यापक हो सकता है, जितना 1873 में अमेरिका द्वारा सिल्वर डॉलर खत्म करने का हुआ था। india decision
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार द्वारा बड़ी करेंसी को बंद करने के फैसले से भारत के उद्योग जगत को बड़ा झटका लग सकता है। हालांकि, इसके दूरगामी नतीजे व्यापक और स्थायी होंगे। इस समय भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक करेंसी पर निर्भर है।
17 साल पहले की तुलना में आज नौ गुना अधिक नोट चलन में हैं। भारतीय नोटों का प्रसार चीन से बहुत ज्यादा है, जिसके आर्थिक विकास की दर भारत से कहीं तेज है। लेकिन चूंकि सरकार ने पांच सौ और हजार रुपये के नोट बंद कर दिए हैं, अब लोगों को छोटी करेंसी या इलेक्ट्रॉनिक कारोबार पर निर्भर रहना पड़ेगा। स्वाभाविक है कि बाजार पर इसका असर पड़ेगा। लोगों को शैंपू से लेकर रेफ्रिजरेटर और अपार्टमेंट तक खरीदने का काम कुछ दिनों के लिए टालना पड़ेगा।
इसी तरह सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद बैंकिंग की सुविधा अभी सभी लोगों को उपलब्ध नहीं है। इसके चलते बहुत सारे कर्मचारियों और श्रमिकों को नकदी में ही भुगतान होता है। अब नई परिस्थितियों में उनको पैसे मिलने में बहुत कठिनाई होगी।
हालांकि, कुछ परेशानियों के बावजूद इसका असर दूरगामी होगा। काला धन जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था के पांचवें हिस्से के बराबर है, उसकी कमर टूट जाएगी। इसके अलावा बैंक में जमा राशि में भारी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।