जानकारों की बदौलत डायबिटीज़ का एक लम्बे समय से अनदेखा रूप सामने आया है। इसे टाइप 5 डायबिटीज़ का नाम दिया गया है। इसकी मौजूदगी ज़्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पाई गई है।
डायबिटीज़ का यह प्रकार लाखों कुपोषित युवाओं को प्रभावित करने के साथ अपनी चपेट में लेता है। आधिकारिक तौर पर टाइप 5 मधुमेह के रूप में मान्यता दे दी गई है।
जानकार बताते हैं कि 70 वर्षों से पंजीकृत होने के बावजूद, स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा इस रोग को अकसर इसे डायग्नोस नहीं कर सके या उन्हें इसे समझने में ग़लतफ़हमी हुई।
अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ ने टाइप 5 मधुमेह को पोषण-संबंधी समस्या बताया है जो कमज़ोर किशोरों और वयस्कों को प्रभावित करती है। इस रोग को प्रायः चिकित्सक पहचाना नहीं पाते हैं।
पिछले साल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि 1990 के बाद से मधुमेह का वैश्विक प्रसार लगभग सात प्रतिशत से दोगुना होकर 14 प्रतिशत हो गया है।
नई खोजी गई बीमारी को आईडीएफ यानी अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ ने टाइप 5 मधुमेह नाम दिया है। शोधकर्ताओं के प्रयास को मेडिकल के क्षेत्र में इस रोग की घातक स्थिति को समझने और उसका इलाज करने के वैश्विक प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है।
टाइप 5 मधुमेह को पोषण-संबंधी मधुमेह (nutrition-related diabetes) के रूप में भी जाना जाता है। इसका प्रभाव एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों के ज्यादातर दुबले-पतले किशोरों और युवा वयस्कों में देखा जाता है। इन इलाक़ों में खाद्य असुरक्षा और व्यापक गरीबी है।
टाइप 5 मधुमेह दीर्घकालिक कुपोषण के कारण होती है जबकि इसके विपरीत, टाइप 2 मधुमेह मोटापे से जुड़ी है। यही कारण है कि यह समस्या विकासशील देशों में मधुमेह के अधिकांश मामलों के लिए ज़िम्मेदार है।
बताते चलें कि कुपोषण से संबंधित मधुमेह का पहली बार 70 साल पहले वर्णन किया गया था, बाद में कई अध्ययनों में पाया गया कि गरीब देशों में इस बीमारी का प्रकोप बहुत ज़्यादा है। उन रिपोर्टों के जवाब में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1985 में कुपोषण से संबंधित मधुमेह को बीमारी के एक अलग रूप के रूप में मान्यता दी। अध्ययनों और सहायक साक्ष्यों की कमी के कारण, WHO ने 1999 में इस पदनाम को हटा दिया।