शरीर की गति, संतुलन और मांसपेशियों के नियंत्रण से जुड़ी समस्या को नज़र अंदाज़ न करें। यह पार्किंसन्स रोग हो सकता है। पार्किंसन्स एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है और दुनियाभर में एक करोड़ 17 लाख लोग इससे प्रभावित हैं।
अकसर आप ऐसे लोगों को देखते होंगे जिन्हें अपने हाथ पैर पर पूरी तरह कंट्रोल नहीं होता और इनमे कम्पन होता रहता है। इस रोग को पार्किंसन्स रोग (Parkinson’s Disease) कहते हैं।
यह तंत्रिका तंत्र (nervous system) संबंधी रोग है, जो मुख्य रूप से शरीर की गति, संतुलन और मांसपेशियों के नियंत्रण पर असर डालता है। यह समस्या आमतौर पर 60 साल से अधिक आयु के लोगों में देखी जाती है, मगर कभी-कभी यह कम उम्र में भी सामने आ सकती है।
पार्किंसन्स की समस्या डोपामिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर की कमी से होती है। मस्तिष्क में शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने का काम डोपामिन का है।
जिस समय मस्तिष्क में डोपामिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं तो पार्किंसन्स की समस्या उभरने लगती है। इसे निम्न लक्षणों से पहचाना जा सकता है-
हाथ-पैर कांपना (Tremors)
काम करने की रफ़्तार कम हो जाना (Bradykinesia)
मांसपेशियों में अकड़न (Rigidity)
संतुलन की समस्या (Postural instability)
चेहरे के हाव-भाव का कम होना (Mask-like face)
अवसाद के साथ धीमी आवाज़ और नींद की समस्या
वैसे तो पार्किंसन्स का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही देखभाल और इलाज से इसके लक्षणों को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि-
डॉक्टर की सलाह लें।
नियमित व्यायाम करें जिससे संतुलन और गति सुधरने में मदद मिलेगी।
संतुलित आहार भी इसमें मददगार होगा।
फिजियोथेरेपी और स्पीच थैरेपी तथा
सकारात्मक सोच और मेंटल हेल्थ पर ध्यान दें।
ध्यान रखें कि पार्किंसन्स, आनुवंशिक कारणों से भी हो सकती है। इसके अलावा पर्यावरणीय कारक भी इसके लिए ज़िम्मेदार बनते हैं जिनमे प्रदूषण, पेस्टीसाइड्स आदि हैं।
या फिर मस्तिष्क में सूजन या चोट आदि भी इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं।
इसके अलावा उम्र बढ़ना और इस अवस्था में डोपामिन कोशिकाएं घटने से यह समस्या सामने आती है।