दुनिया जिस तेजी से डिजिटल युग में बदल रही है उस रफ़्तार ने इंसान को थका भी दिया है। और ऐसे में एक सवाल आता है कि क्या डायरी लिखने जैसे शौक़ को अपनाकर तनाव और बेसूकूनी से निपटने में मदद मिल सकती है या नहीं? जूलिया सैमुअल्स, एक अंग्रेज मनोचिकित्सक और ‘ग्रीफ वर्क्स’ की लेखिका इस सवाल का बड़ा ही सकारात्मक उत्तर देती हैं।
एक ब्रिटिश टीवी कार्यक्रम में डायरी लिखने के सवाल का जवाब देते हुए, जूलिया सैमुअल का कहना था कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि जब हम जो महसूस करते हैं उसे शब्दों में लिखते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को उसी तरह व्यक्त कर रहे होते हैं। या कहें कि डायरी के साथ हम एक सीधी बातचीत में होते हैं।
डायरी लेखन कहीं न कहीं व्यक्ति के जीवन में एक नियम स्थापित करता है और ये नियम उसके जीवन से जुड़ जाता है।
जूलिया आगे कहती हैं कि वास्तव में, व्यक्तिगत डायरी लिखना किसी भी टॉक थेरेपी जितना ही प्रभावी है। यह भावनाओं, चिंता और तनाव को नियंत्रित करने में मदद करता है। इतना ही नहीं, यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली, हमारे मूड को भी बेहतर बनाता है और यह अकसर उन समस्याओं का समाधान करता है जो हमारे विचारों को प्रभावित कर रही हैं।
इसके अलावा, डायरी लिखने वाले, जो यह जानते हुए या उम्मीद करते हुए लिखते हैं कि उनके विचार दूसरे लोग पढ़ेंगे, इस किस्म के जोशीले एहसास उनके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव डालने में भी मददगार साबित होते हैं।
ये भी देखा गया है कि डायरी लिखने की आदत की वजह से व्यक्ति खुद को अकेला महसूस नहीं करता है। दिनभर की बातें याद करना और उनके लिए शब्दों का चयन करना भी न सिर्फ लेखन में सुधार करता है बल्कि ब्रेन की एक्सरसाइज़ के अलावा आपके शब्दकोष को बढ़ाने में भी सहायक होता है।
डायरी लेखन कहीं न कहीं व्यक्ति के जीवन में एक नियम स्थापित करता है और ये नियम उसके जीवन से जुड़ जाता है।
सबसे अच्छी बात ये होती है कि अनुभव और संवेदनाओं के साथ ये डायरी ही है जो तमाम बातों को दर्ज रखती है और आपके लिए कई बार ऐसे सबूत मुहैया करा देती है जब अपनी बात से जुड़े तथ्य आपके सामने दर्ज रूप में मिल जाते हैं।
इसलिए एक डायरी का लिखा जाना आपके लिए कई तरह से लाभकारी हो सकता है।