प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर शोधकर्ता मानते हैं कि गर्मी और नमी से हिंसा सहित आक्रामक व्यवहार बढ़ जाता है। ऐसे में जलवायु संबंधी आपदाओं से परिवारों में तनाव और खाद्य असुरक्षा का इज़ाफ़ा भी हिंसा में वृद्धि का कारण बनता है।
शोध के मुताबिक, जलवायु संबंधी आपदाएं परिवारों में तनाव और खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा देती है जिसके नतीजे में हिंसा वृद्धि की प्रवृत्ति बढ़ती है। ऐसे में शोधकर्ता सलाह देते हैं कि देशों की आपदा नियोजन प्रक्रियाओं में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर विचार किया जाना चाहिए।
शोध से पता चलता है कि तूफान, भूस्खलन और बाढ़ के बाद के दो वर्षों में परिवार की महिलाओं को हिंसा झेलनी पड़ती है और इसका कारण अव्यवस्थाओं के साथ गर्मी और नमी से के कारण बढ़ी हिंसा की प्रवत्ति है जो महिलाओं पर आक्रामक व्यवहार की ज़िम्मेदार है।
पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु शमन और अनुकूलन प्रयास महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने 1993 से 2019 के मध्य 363 सर्वेक्षण किए। शोध के लिए 156 देशों से अंतरंग साथी पर हिंसा से जुड़े आंकड़े एकत्र किए गए।
शोध के दौरान उन महिलाओं पर फोकस किया गया जिनके पास वर्तमान में एक साथी है। अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा को बीते वर्ष में किसी भी शारीरिक या यौन हिंसा के रूप में की जाने वाली हिंसा के रूप में परिभाषित किया गया।
फिजी और समोआ दो ऐसे देश हैं जो “महिलाओं के विरुद्ध हिंसा” का उल्लेख करने और इससे निपटने के लिए धन आवंटित करना तथा जलवायु परिवर्तन लिंग संबंधी कार्य योजनाएं विकसित करने जैसे योजनाओं पर काम कर रहे हैं।
शोध टीम द्वारा 190 देशों में 1920 से 2022 तक जलवायु संबंधी आंकड़े के डेटा भी एकत्र किए गए। इस दौरान जलवायु संबंधी समस्याएं और अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा के बीच संबंधों का विश्लेषण तथा देश की आर्थिक स्थिति पर भी विचार किया गया।
शोधकर्ताओं ने अंतरंग साथी के साथ हिंसा तथा कुछ जलवायु संबंधी घटनाओं (तूफान, भूस्खलन और बाढ़) के बीच एक संबंध पाया। जबकि इस बीच भूकंप और जंगल की आग जैसी जलवायु संबंधी समस्याओं और अंतरंग साथी के द्वारा की जाने वाली हिंसा के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं देखा गया।
शोध बताता है कि अधिक सकल घरेलू उत्पाद वाले देशों में अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा की दर कम देखी गई। शोध के हवाले से इन जानकारों का कहना है कि जब कोई महिला जलवायु संबंधी घटना का अनुभव करती है, तो कुछ देशों में उसके हिंसा का अनुभव करने की दर अधिक होती है, ऐसा अन्य देशों में नहीं है।
शोध से जुड़े जानकार यह भी मानते हैं कि अलग-अलग समस्याओं का हिंसा पर प्रभाव पड़ने में अलग-अलग समय लग सकता है। ऐसे में समयावधि का सटीक होना निश्चिन्त नहीं है। इस संबंध में अभी आंकड़ों का कम उपलब्ध होना भी एक कारण बताया जा रहा है।
पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु शमन और अनुकूलन प्रयास महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आगे वह कहते हैं कि इसमें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, जिसमे देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिए किए जाने वाले संकल्प जैसे “महिलाओं के विरुद्ध हिंसा” का उल्लेख करना और इससे निपटने के लिए धन आवंटित करना तथा जलवायु परिवर्तन लिंग संबंधी कार्य योजनाएं विकसित करना शामिल किया जा सकता है। शोध से पता चलता है कि फिजी और समोआ दो ऐसे देश हैं जो पहले ही ऐसा कर चुके हैं।