लखनऊ खंडपीठ के यूपी के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय आ गया है। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द करने के साथ तुरंत चुनाव कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस सम्बन्ध में सरकार की दलीलों को नहीं माना है।
ओबीसी आरक्षण को रद्द करते कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी को कोई आरक्षण न दिया जाए। ऐसे में बगैर ओबीसी को आरक्षण दिए स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं। साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग बनाया जाए।
लखनऊ पीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जल्द से जल्द चुनाव कराने का आदेश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार की दलीलों को मानने से इनकार कर दिया।
आज न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने को यह निर्णय ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया। सरकार की ओर से कोर्ट ने चुनाव के संबंध में जारी गत 5 दिसंबर के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को भी निरस्त कर दिया गया है।
जिला प्रशासन की देखरेख में रैपिड सर्वे के तहत नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण किया जाता है और इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेजा जाता है।
इस मामले में याची पक्ष का कहना था कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के अंतर्गत ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।ये प्रक्रिया डेडिकेटेड कमेटी द्वारा करने की बात कही गई थी। कोर्ट में सुनवाई चलते रहने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग के अधिसूचना जारी करने पर रोक लगी हुई थी।
राज्य सरकार ने इस मामले में दाखिल किए गए अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट मानने की बात कह रही थी। सरकार द्वारा ये भी कहा गया था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार से सवाल किया था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति हुई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले नगर निकाय चुनावों में एक आयोग का गठन किया जाएगा। ये गठन निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करते हुए पिछड़े वर्ग के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा जबकि तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।